विजय शंकर पांडेय
एक पुल की व्यथा, जिसकी नींव में सिर्फ पत्थर नहीं, एक मां की मजबूरी भी है। शाही पुल का शाही किस्सा – जब एक औरत ने अकबर की नौका रोक दी थी!
1564 का जौनपुर, गोमती नदी लहरें मार रही थी और बादशाह अकबर नौका विहार के मूड में थे। साथ में मुनीम खान खाना – जी हां, वही जो हर चीज में ‘खाना’ जोड़ देते थे, चाहे वो मस्जिद हो या मनसबदारी। नाव पर सवार अकबर सोच रहे थे कि आज थोड़ा सुकून मिलेगा, मगर इतिहास को शायद सुकून से चिढ़ है।
तभी एक औरत चीख-चीखकर नौका को रोके जा रही थी, जैसे कह रही हो – “बादशाह! ज़रा इधर भी देख लो, गोमती पार करना तुम्हारी शान की तरह मुश्किल हो गया है!”
नाव रुकी। अकबर उतरे, चेहरा गंभीर। औरत ने कहा – “साहब! दो बच्चे हैं, एक बीमार, दवा और रोटी ले आई हूं, पर अब घर नहीं जा सकती। नाव जा चुकी है।”
मुनीम खान को लगा ये सियासत से बाहर की बात है, मगर औरत वहीं नहीं रुकी – “आपके मुनीम मस्जिद के लिए चंदा इकट्ठा कर रहे हैं, पर पुल के लिए नहीं! खुदा को तो पैदल रास्ता नहीं चाहिए, हमें चाहिए!”
अकबर के चेहरे पर हल्की मुस्कान आई, बोले – “मस्जिद बाद में बनेगी, पहले पुल बनेगा!”
अब मुनीम खान की आंखें वैसे ही फैल गईं जैसे खजाने में कोई घोटाला पकड़ लिया गया हो। बोले – “हुजूर! यहां कुंड है, गहरा है, पुल बनाना मुश्किल है।” अकबर ने तलवार नहीं निकाली, बस एक नजर डाली – और काम हो गया।
अब शाही इंजीनियर बैठे – बोले नदी की दिशा बदलनी पड़ेगी। जैसे बादशाह का मन बदलता है, वैसे ही गोमती की धारा भी बदल दी गई। फिर शुरू हुआ ‘ऑपरेशन शाही पुल’। कुल 10 पिलर खड़े हुए, जो आज भी खड़े हैं। 1567 में जब पुल बनकर तैयार हुआ तो जौनपुर वालों ने सोचा, “अब जिंदगी आसान होगी।”
लेकिन तब आए ओमनी साहब, जिलाधीश। उन्होंने सोचा, “सड़क खाली क्यों दिख रही है? चलो, गुमटी बना देते हैं।” 28 गुमटियां बना दी गईं – जैसे पुल नहीं, हाट बाजार हो। लोग पुल पर टहलते कम, समोसे और कचौड़ी ज्यादा देखते। जैसे-जैसे वक्त बदला, भीड़ बढ़ी, जाम लगने लगा।
इतिहास गवाह है – एक महिला की आवाज ने पुल बनवा दिया, और आजकल के सांसद विधायकों से आप चिरौरी करते रहिए कोई सुनवाई नहीं होगी।
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