अकेलापन – अब लाइफ का परमानेंट रूममेट

 विजय शंकर पांडेय 



खामोशी लाखों जिंदगियां ले रही है। लेकिन हमारा जवाब? "अरे, मैं तो इंट्रोवर्ट हूँ, ये मेरा स्टाइल है!" अकेलापन अब कोई बीमारी नहीं, "ट्रेंड" बन चुका है। पहले लोग 'सोलो ट्रिप' पर जाते थे, अब 'सोलो लाइफ' पर निकल पड़े हैं। 



रिश्तों में इतनी 'नेटवर्क प्राब्लम' है कि अब लोग emotions को भी एयरप्लेन मोड में रखकर जी रहे हैं। WHO कहता है कि हर छठा इंसान अकेला है। हमारा सवाल है — भाई बाकी पांच ने कौन-सा मुहब्बत की लॉटरी मार ली है? पहले लोग अकेलेपन से डरते थे, अब इंस्टाग्राम पर कैप्शन डालते हैं — "Alone but peaceful", और फोटो में Peace sign के साथ थोड़ा Sad filter लगा देते हैं। भीतर से टूटे हुए, बाहर से फोटोज में Cute! 


युवाओं की हालत सबसे खराब है। वो तो अब इंस्टा रील्स और व्हाट्सएप स्टेटस तक सिमट गए हैं! युवा तो इस अकेलेपन के ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीत रहे हैं। सुबह स्क्रॉल, दोपहर स्क्रॉल, रात को भी स्क्रॉल—बस दोस्तों का नंबर स्क्रॉल नहीं होता।


दिन भर चैटिंग करते हैं, फिर भी कहते हैं, "कोई समझता नहीं मुझे...।" व्हाट्सएप पर 256 कॉन्टैक्ट्स, लेकिन रात को कॉल करने के लिए एक भी 'बाय डिफॉल्ट' इंसान नहीं। गूगल से पूछते हैं — "How to be happy alone?" गूगल भी जवाब देता है — "किसी थेरेपिस्ट से संपर्क करें।" 


अब दोस्त भी इतने व्यस्त हैं कि पहले मिलने के लिए टाइम पूछते थे, अब पूछते हैं — Zoom या Google Meet? एक जमाना था जब दोस्त चाय के बहाने मिलते थे, अब मेंटल ब्रेकडाउन के बाद कॉल पर “ब्रो, तुम ठीक तो हो ना?” कहकर फिर ऑफलाइन हो जाते हैं। 



और रिश्तेदार? उनसे बातचीत का मतलब है — "शादी कब करोगे?", "जॉब लगी?", "फ्लैट लिया या अब भी रेंट पर?" फिर भला इंसान अकेला न हो तो क्या करे? अकेलापन अब मानसिक नहीं, सामाजिक लाइफस्टाइल है। हर कोई दिखना चाहता है बिज़ी, खुश और सक्सेसफुल — भले ही अंदर से खुद से बात करने में भी डर लगता हो। 



जिंदगी अब इमोशंस से नहीं, EMI से चलती है। जहां लोग रिलेशनशिप में भी “स्पेस” चाहते हैं, वहां अकेलापन तो जैसे Buy 1 Get 1 Free ऑफर हो गया है। फिल्मों में हीरो-हीरोइन अकेले होते हैं, मिलते हैं, गाना गाते हैं, और कहानी खत्म। रियल लाइफ में हम अकेले होते हैं, डेटिंग ऐप खोलते हैं, "Hey" भेजते हैं, और रिप्लाई कभी नहीं आता। 


WHO चिंतित है, लेकिन बाजार खुश है। अकेलेपन के नाम पर मेडिटेशन ऐप, स्लीप म्यूजिक, इमोशनल थेरेपी, और 'सोल मेट फाइंडर वेबसाइट्स' की चांदी हो गई है। आखिर अकेलेपन से बड़ी कोई मार्केटिंग स्ट्रैटेजी थोड़ी है! तो अब अगर आप अकेले हैं, तो घबराइए मत — आप ट्रेंड में हैं। 


और अगर आप बहुत खुश हैं, बहुत सोशल हैं, तो पक्का कोई न कोई “अंदर से अकेलापन महसूस कर रहा हूं” पोस्ट जल्दी डालने वाले हैं। बोलिए, लाइफ में अकेलापन है... या कंटेंट का खजाना? बेशक चुनौतियां बढ़ी हैं, पर हमने भी तो अकेलेपन को 'लाइफस्टाइल' बना लिया! तो चलिए, अगली रील में मिलते हैं—अकेले, मगर स्वैग के साथ!

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