स्क्रिप्टेड ड्रामा सरीखा है ट्रंप का लोकतंत्र

 

विजय शंकर पांडेय 

ओबामा बोले, “अमेरिका लोकतंत्र से भटक रहा है।” और जनता बोली, “हम तो कब से जीपीएस ऑन किए घूम रहे हैं, लेकिन ये लोकतंत्र वाला रास्ता दिख ही ही नहीं रहा!” 


अब देखिए, ट्रम्प जी देश को जिस अंदाज में चला रहे हैं, वो लोकतंत्र नहीं, रियलिटी शोक्रेसी है। हर प्रेस कॉन्फ्रेंस ऐसे करते हैं जैसे "एप्रेंटिस" का नया सीज़न लॉन्च हो रहा हो—"यू आर फायरड!" से लेकर "चाइना इज चीटिंग!" तक, सब कुछ स्क्रिप्टेड ड्रामा लगता है। 



ओबामा तो सादा सूट पहनकर भाषण देते थे, और ट्रम्प? उनके सूट से ज़्यादा उनके ट्वीट्स में धार है। इतना ट्वीट करते हैं कि ट्विटर को भी एलन मस्क से पहले डर लगने लगा था—“सर, बंद कर दें क्या सर्वर? आपकी लोकतांत्रिक आग हमें जला रही है।” अब ट्रेड वॉर को ही देख लीजिए। ट्रम्प ने चाइना से व्यापार युद्ध शुरू किया, लेकिन नुकसान हुआ अमेरिकी किसानों को। 


ट्रम्प साहब ने सोचा, "चीन, मेक्सिको, कनाडा—सबको टैरिफ की मार! अमेरिका फर्स्ट, बाकी सब थर्स्ट!" अब ये टैरिफ की मार इतनी जोरदार थी कि अमेरिका के अपने ही दुकानदार चिल्लाने लगे, "भाई, ये सामान महंगा क्यों हो गया?" लेकिन ट्रम्प साहब का जवाब? "मेक अमेरिका ग्रेट अगेन!" अरे भाई, ग्रेट तो ठीक, पर वॉलमार्ट में सामान का दाम सुनकर जनता का दिल पहले ही "ग्रेट डिप्रेशन" में चला गया।  


मतलब, उन्होंने चीन को मुक्का मारा, और अमेरिका की नाक टूट गई! और अब गरिमा की बात करें तो... गरिमा शायद वो पड़ोसी है, जिसे ट्रम्प सरकार ने व्हाइट हाउस से बाहर निकाल दिया है। कोई पूछे, “व्हाइट हाउस में कौन रहता है?” जवाब मिलेगा, “गरिमा नहीं।” 


अमेरिकन डेमोक्रेसी अब लोकतंत्र नहीं, लोकतमाशा बन चुकी है। कभी एफबीआई पर आरोप, कभी मीडिया को “फेक न्यूज” कहना—हर बार सच्चाई को उतना ही मरोड़ा जाता है, जितना आटा गूथने वाली मशीन में। 


अब ट्रम्प साहब ने तो ट्विटर (अब X) को ही अपना व्हाइट हाउस बना लिया। एक ट्वीट, और पूरी दुनिया में हड़कंप। "चीन, तैयार हो जाओ!"—और अगले दिन अमेरिकी किसान सोच रहे हैं, "हमारी सोयाबीन का क्या होगा?" ट्रेड वॉर की ये जंग ऐसी है कि दोनों तरफ के सिपाही (यानी आम जनता) ही पिस रही हैं। 


ओबामा की चिंता जायज है। आखिर उन्होंने सालों तक देश को संभाला, और अब देखते हैं कि उसी देश में मीम्स और मेक अमेरिका ग्रेट अगेन की टोपियों से ही नीति तय हो रही है। अंत में लोकतंत्र खड़ा सोच रहा है, “मैं तो जनता की, जनता के लिए, जनता द्वारा थी... ये क्या हो गया? अब तो मैं रियलिटी शो की, रेटिंग के लिए, ट्विटर पोल द्वारा हो गया हूं!” सच कहें तो अब अमेरिका को संविधान नहीं, एक अच्छा स्क्रिप्ट राइटर चाहिए। और शायद थोड़ा सा ओबामा ब्रांड "लोकतांत्रिक मल्टीविटामिन" भी। ट्रम्प ब्रांड च्यवनप्राश से तो इम्युनिटी जा रही है!

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