विजय शंकर पांडेय
कमरे में दाखिल होते ही आपकी नजर जहां भी घुमेगी किताबों का जखीरा दिखेगा... बहुत सहेज कर सलीके से रखी गईं किताबें... पत्र-पत्रिकाएं... इनमें दुर्लभ साहित्य भी है... यह कमरा है वरिष्ठ पत्रकार योगेंद्र नारायण शर्मा जी का.... उनकी बातों से पता चला कि उन्होंने कहीं और भी किताबों का भंडार गृह बना रखा है.... किताबों और लेखकों के नाम से ही आप सहज ही उनके स्तरीय और उम्दा टेस्ट का अनुमान लगा सकते हैं...
उनकी इस यात्रा में ऋगवेद से लेकर वोल्गा से गंगा तक की डूबकी लगाई जा सकती है.... और जाहिर है सर्व विद्या की राजधानी काशी में ही ऐसा संभव है.... सोशल साइटों पर पिछले दिनों कई वरिष्ठ लेखकों और पत्रकारों के कमेंट मैं घटती पठनीयता पर पढ़ा... बहुतों ने तो लाइब्रेरी इत्यादि को गुजरे जमाने की बात करार भी दिया... ख्यातिलब्ध संचार वैज्ञानिक मार्शल मैक्लुहान ने अपनी पुस्तक ‘मीडियम इज द मैसेज’ में 50 के दशक में भविष्यवाणी की थी कि सूचना क्रांति के चलते दुनिया बहुत ही छोटी हो जाएगी.... वाकई दुनिया‘ग्लोबल विलेज’ में तब्दील भी हो गई...
मैक्लुहान की भविष्यवाणी बिल्कुल सच साबित हुई.... मगर चाहे किताबों की बात करें या फिर पत्र पत्रिकाओं की... डिजिटल दुनिया में पढ़ने की आदतों में भारी गिरावट आई है... जाहिर है सूचना क्रांति के इस दौर में विवेक तक की यात्रा दुर्गम होती जा रही है... कुछ लोगों ने उनसे किताबें पढ़ने के नाम पर ली तो सही.... मगर लौटाई नहीं.... इस बात से वे बहुत नाराज भी दिखे....
वाजिब भी है उन्होंने कठिन तपस्या कर इतना बड़ा संग्रह खड़ा किया होगा... वे अपनी किताबों से दोस्ती की कीमत पर किसी के साथ दोस्ती निभाने के मूड में बिल्कुल नहीं दिखे.... हां, उनकी एक साध जरूर है.... उनकी किताबों को कहीं ऐसी जगह मिले... जहां उसके कद्रदान भी मिले... और आने वाली पीढ़ी इसका पूरा पूरा लाभ उठा सके.... और उनकी यह अमूल्य निधि पूरी तरह से सुरक्षित भी रहे....
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