#विजय_शंकर_पांडेय
युद्ध की तैयारी ज़ोरों पर है।
दुश्मन कौन है,
ये अभी तय नहीं हुआ।
पर बंदूकें चमक रही हैं,
बजट बढ़ रहा है,
और भाषणों में
देश प्रेम उबल रहा है।
ट्रेनिंग कैंप में
दुश्मन का चेहरा नहीं दिखता,
पर अपनों की शक्लें
साफ़ दिखती हैं।
नक़्शे में रेखाएँ खींचकर,
दिलों में दीवारें बनाई जा रही हैं।
सैनिक पूछता है
—किससे लड़ना है?
जवाब आता है
—जो सरकार बताए वही दुश्मन।
युद्ध शुरू होने से पहले ही
पोस्टर छप जाते हैं
—“हम नहीं शुरू करते,
लेकिन खत्म ज़रूर करते हैं।”
बम बन रहे हैं
स्कूल के बजट से।
अस्पताल में सर्जन नहीं,
लेकिन टैंक में मिसाइल ज़रूर है।
टीवी पर युद्ध,
सोशल मीडिया पर युद्ध,
बस घरों में शांति बची है
—वो भी संदिग्ध।
और जब अंत में
कोई नहीं बचता,
तब सरकार कहती है
—“हम जीत गए।”
कभी सोचिए, किससे?
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