व्यंग्य
बधाई हो, भारत अब चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है, मगर प्रति व्यक्ति आय?
विजय शंकर पांडेय
भारत अब दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है! जश्न मनाइए, मिठाई बांटिए और अगर वक्त मिले तो बिजली का बिल भी भर दीजिए – अगर आपके पास बिजली आती हो तो! सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब हमारी अर्थव्यवस्था 4 ट्रिलियन डॉलर के पास खड़ी है। बस यूं समझ लीजिए कि GDP आसमान छू रही है, जबकि आम आदमी की जेब अब भी ज़मीन में छेद कर नीचे निकल रही है। 2025 का भारत! दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है! सुनने में तो ऐसा लग रहा है, जैसे हमने चाँद पर रॉकेट लॉन्च कर दिया हो, लेकिन जरा ज़मीन पर आइए, भाईसाहब! GDP का तमगा चमक रहा है, मगर प्रति व्यक्ति आय? वो तो अभी भी साइकिल पर बैठकर मर्सिडीज़ का सपना देख रही है। आइए, इस उपलब्धि का जश्न मनाते हैं।
अब तेरा क्या होगा मिडिल क्लास?
भारत में मिडिल क्लास की परिभाषा के दायरे में वो लोग आते हैं, जिनकी सालाना आय 5 से 30 लाख रुपये (2020-21 के मूल्यों के आधार पर) तक है। पीपुल्स रिसर्च ऑन इंडियाज़ कंज़्यूमर इकोनॉमी के मुताबिक़ फ़िलहाल (2025) देश की आबादी का 40 फ़ीसदी मिडिल क्लास के दायरे में आता है। 2016 में 26 फ़ीसदी लोग मिडिल क्लास के दायरे में आते थे। कल्पना कीजिए, बनारस के किसी चौराहे पर एक चाय की टपरी के सामने बैठे हैं तीन दोस्त - रमेश, सुरेश और मध्यवर्गीय सपनों का भूत। रमेश चाय की चुस्की लेते हुए कहता है, “सुना है, भारत अब चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है!” सुरेश, जो अपनी पुरानी स्कूटी का ईएमआई भरने के लिए ओला चला रहा है, तपाक से बोलता है, “हाँ, भाई, मगर मेरी जेब तो अभी भी खाली है।” तीसरा दोस्त, मध्यवर्गीय सपनों का भूत, हँसते हुए कहता है, “अरे, तुम लोग तो मज़े में हो। मैं तो अब विलुप्त होने की कगार पर हूँ। मिडिल क्लास? वो क्या बला है?” दरअसल, भारत की इस “महान उपलब्धि” का सच यही है।
6 अरब लोगों की जिंदगी “सपने बड़े, जेब छोटी” के भरोसे
GDP का आँकड़ा तो चमक रहा है, मगर प्रति व्यक्ति आय अभी भी “बस थोड़ा और सब्र करो” के भरोसे टिकी है। विश्व बैंक के आँकड़ों के मुताबिक, 2023 में 108 मध्य आय वाले देशों में 6 अरब लोग रहते हैं, जिनमें से ज़्यादातर की जिंदगी “सपने बड़े, जेब छोटी” के जुमले पर चल रही है। भारत में प्रति व्यक्ति आय 2024 में करीब 2,500 डॉलर थी। तुलना करें तो, अमेरिका में ये 80,000 डॉलर के आसपास है। यानी, हमारी अर्थव्यवस्था भले ही चौथे नंबर पर हो, लेकिन आम आदमी की जेब अभी भी “चौथे दर्जे” की ट्रेन के डिब्बे जैसी है—ठसाठस, मगर सुविधाएँ नदारद। अब बात मिडिल क्लास की। ये वो वर्ग है, जो न तो गरीब है, न अमीर, बस EMI, टैक्स और इंस्टाग्राम रील्स के बीच फँसा है। मिडिल क्लास का सपना है—2 BHK फ्लैट, एक SUV, और बच्चों के लिए “इंटरनेशनल स्कूल”। मगर हकीकत? हर महीने बजट बनाने में कैलकुलेटर तपने लगता है। ऊपर से महँगाई! कब प्याज़ और टमाटर सोने की कीमत से टक्कर लेने लगे कोई ठिकाना नहीं। ऐसे में मिडिल क्लास का भविष्य? वो तो बस एक रील बनाकर “हम भी अमीर बन जाएँगे” का गाना गा रहा है।
“ट्रिकल डाउन इकोनॉमी” का इंतज़ार करते-करते लोग थक गए
वो भी यही। मध्य आय वाले देशों में गरीबी और असमानता की खाई इतनी गहरी है कि “ट्रिकल डाउन इकोनॉमी” का इंतज़ार करते-करते लोग थक गए। भारत में अगर मिडिल क्लास को बचाना है, तो सिर्फ़ GDP की माला जपने से काम नहीं चलेगा। शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोज़गार पर खर्च बढ़ाना होगा। वरना, रमेश और सुरेश की चाय ठंडी हो जाएगी, और मध्यवर्गीय सपनों का भूत सचमुच विलुप्त हो जाएगा। तो, चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था? बधाई हो, भारत! मगर अगली बार जब GDP का ढोल पीटें, तो जरा प्रति व्यक्ति आय को भी स्टेज पर बुला लें। वरना, चाय की टपरी पर बैठा मिडिल क्लास बस यही कहेगा, “भाई, ये जश्न तो बिना मिठाई का है!”
मिडिल क्लास' हुआ करता था, अब मृगमरीचिका क्लास
रमेश बाबू, जो कभी 'मिडिल क्लास' हुआ करते थे, अब खुद को 'मिराज क्लास' अर्थात मृगमरीचिका वर्ग कहते हैं – एक ऐसा वर्ग जो हर बजट में राहत की उम्मीद करता है और हर बार निराशा हाथ लगती है। रमेश बाबू का मानना है कि देश की तरक्की देखकर बहुत खुशी होती है, खासकर जब पेट खाली हो और सपना पूरा देखें। “अब हमारे देश की GDP जर्मनी से आगे निकल गई है,” रमेश बाबू अपनी बीवी को बताते हैं, “और हमारी इनकम पड़ोसी शर्मा जी से भी पीछे।” शर्मा जी जो पिछले महीने ही कनाडा चले गए, वहीं से इंस्टाग्राम पर चाय की तस्वीरें पोस्ट कर रहे हैं। गली के कोने पर बैठा चाय वाला भी अब आर्थिक मामलों का विशेषज्ञ हो गया है। उसका कहना है, “भाईसाहब, GDP तो बढ़ रही है, लेकिन मुझ जैसे लोगों की आय लग रहा है, ‘GST’ में फंस गई है। 10 रुपये की चाय पर भी टैक्स देना पड़ता है और ग्राहक कहता है – UPI नहीं चलता क्या?”
सपने में भी अम्बानी बन जाएं, तो इंज्वॉय करें
भारत की इस चमत्कारी छलांग के बाद मिडिल क्लास को अब सपना दिखाया जा रहा है कि वो भी जल्द ही अमीर बनने वाले हैं। सरकार का मानना है कि अगर आप सपने में भी अम्बानी बन जाएं, तो वो भी विकास की गिनती में आता है। नींद में जो सुख मिले, वो जागते हुए कहां मिलेगा? इधर न्यूज़ चैनलों पर बहस जारी है – "क्या मिडिल क्लास खत्म हो रहा है?" एंकर चीखता है, "एक तरफ़ GDP बढ़ रही है और दूसरी तरफ रमेश बाबू अब भी EMI भरने के लिए किराना दुकानदार से उधार मांग रहे हैं!"
विकास ऊपर हो रहा है, और मिडिल क्लास नीचे फिसल रहा
विशेषज्ञ बताते हैं कि देश की तरक्की एक संकेत है कि हम ‘विकसित देश’ की ओर बढ़ रहे हैं। हां, बस फर्क इतना है कि विकास ऊपर हो रहा है, और मिडिल क्लास नीचे फिसल रहा है। शायद यही “ट्रिकल डाउन इकोनॉमी” है – ऊपर अमीरों की बरसात, नीचे मध्यम वर्ग की छत टपक रही है। आख़िर में, सवाल बस इतना है – क्या मिडिल क्लास बचेगा? जवाब भी उतना ही सटीक है – मिडिल क्लास अब एक भावनात्मक स्थिति है, एक मिथ है, एक ऐसा ‘जीता-जागता’ वर्ग जो अब ‘कर्ज में डूबता-जागता’ वर्ग बन चुका है। लेकिन घबराइए नहीं, भारत चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है – कम से कम इससे पेट तो नहीं भरता, पर देशभक्ति का सुकून ज़रूर मिलता है।
जय अर्थव्यवस्था! जय मिडिल क्लास!
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