कभी टेलीफोन लाइन जोड़ने में हफ़्तों लगते थे, आज व्हाट्सएप कॉल पर दुनिया जुड़ी है। पर अफ़सोस, जिस आदमी ने भारत को कम्प्यूटर से जोड़ा, वो आज हमारे साथ नहीं। राजीव गांधी होते, तो शायद फेसबुक की जगह फेस-टू-फेस बातें ज़्यादा होतीं, और ट्विटर पर कठफोड़वा कम, टेक्नोलॉजी ज़्यादा होती।
आज जब डेटा अनलिमिटेड है, पर दिशा लिमिटेड लगती है, तब उनकी दूरदर्शिता की कमी खलती है। उन्होंने जिस भारत को डिजिटल बनाना शुरू किया, वह अब डिजिटल डिवाइड से जूझ रहा है।
इस मिस इन्फॉर्मेशन के युग में, सही जानकारी और साफ़ नीयत की जितनी ज़रूरत है, उतनी ही ज़रूरत है राजीव जैसे विज़नरी की—जो कंप्यूटर लाने पर तानों के बावजूद टिके रहे।
पुण्यतिथि पर एक विनम्र श्रद्धांजलि—टेक्नोलॉजी को जनतंत्र से जोड़ने वाले नेता को।
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