हमारी बुद्धि अब नोटिफिकेशन से जागती है

 विजय शंकर पांडेय 



हम सोचते नहीं,

सर्च करते हैं।


जो वायरल है — वही सच है।

जो ट्रेंड कर रहा है — वही विचारधारा।


तथ्य देखे नहीं जाते,

फॉरवर्ड किए जाते हैं।


रील्स में इतिहास,

मीम्स में दर्शन।

और कमेंट में क्रांति।


हम बहस नहीं करते,

सीधे ब्लॉक कर देते हैं।

तर्क सुनते नहीं,

ट्रोल करते हैं।


ज्ञान अब किताबों में नहीं,

क्लिकबाइट में है।

जो बोले, वही ज्ञानी।

जो सोचे, वो पागल।


पढ़ने का वक्त नहीं,

स्क्रॉलिंग ज़रूरी है।

चाय ठंडी चल जाएगी,

फोन गरम नहीं होना चाहिए।


हमारी बुद्धि अब नोटिफिकेशन से जागती है,

और डाटा पैक के साथ सो जाती है।


अब सोचने की ज़रूरत किसे है?

जब एआई है!

गूगल है!

और

"भाई ने बताया" है।


शायद हम समाज नहीं,

सर्वर बनते जा रहे हैं —

जहाँ सोच नहीं होती,

सिर्फ लोडिंग... चलती है।





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