TRP की चिता पर बैठकर लाइव आत्मदाह

 विजय शंकर पांडेय 

9 मई की रात, भारतीय पत्रकारिता ने TRP की चिता पर बैठकर लाइव आत्मदाह कर लिया। कैमरे पर एंकर बोले—"हमने सच्चाई से शादी की थी, लेकिन अफवाह से इश्क़ हो गया।" बगल में ब्रेकिंग न्यूज़ का बैंड बज रहा था—“Exclusive: पत्रकारिता की अंतिम सांस LIVE देखिए सिर्फ हमारे चैनल पर!” न्यूज़ रूम में एंकर चीख रहे थे, "हम निष्पक्ष हैं!" 



जबकि उनके कान में टेलीप्रॉम्पटर फुसफुसा रहा था, "स्क्रिप्ट आ चुकी है, अब बस एक्टिंग करना है।" कई पत्रकार तो आत्महत्या से पहले सेल्फी लेने में व्यस्त थे—#LastPressSelfie ट्रेंड भी कर गया। और अंत में, एक वरिष्ठ एंकर ने कैमरे की तरफ देखकर कहा, "अब हम आपको खबर नहीं देंगे, हम खुद खबर बन गए हैं। कट टू ब्रेक: “एक ब्रेक के बाद दिखाएंगे पत्रकारिता की चिता में कौन सी लकड़ी सबसे तेज़ी से जली।”



सच पूछिए तो यह सामूहिक आत्महत्या की लाइव कवरेज था, पत्रकारिता की अंतिम प्रसारण। 9 मई की रात हुई इस घटना पर वॉशिंगटन पोस्ट ने इसे "मीडिया का मेलोड्रामा" करार दिया है! 



स्टूडियो में माइक थामे एंकरों ने सच्चाई को तिलांजलि देकर TRP की बलिवेदी पर चढ़ा दिया। ब्रेकिंग न्यूज़ का शोर ऐसा कि सच कोने में दुबक गया। एक चैनल ने इसे "राष्ट्र का राग" कहा, तो दूसरे ने "विपक्ष का विष"! स्क्रिप्टेड डिबेट्स में पैनलिस्ट कुश्ती के पहलवान बन गए, तथ्य रेफरी के बिना पस्त। सोशल मीडिया पर मीम्स की बाढ़—किसी ने लिखा, "पत्रकारिता मरी नहीं, तो जवाब आया, "बस, प्रायोजित हो गई!" 



दर्शक पॉपकॉर्न लेकर तमाशा देख रहे थे, रिमोट थामे। वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा, "यह पत्रकारिता नहीं, रियलिटी शो का अंतिम एपिसोड था।" और इस तरह, 9 मई को, पत्रकारिता ने नहीं, बल्कि उसकी आत्मा ने टीवी पर अंतिम सांस ली!

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