विजय शंकर पांडेय
बलिया निवासी जाने माने अधिवक्ता बड़े भाई Vipin Bihari Singh जी की एक फेसबुक टिप्पणी पर आज नजर पड़ी – “70-75 साल पहले पिता अपने बेटे को दुलार भी नहीं सकता था, यह संयुक्त परिवार की ताकत थी।“ इस पोस्ट पर एक सज्जन ने टिप्पणी की कि “हमारी संस्कृति में पितृ के लिए एक पक्ष ही होता है, ये तो पश्चिमी सभ्यता वाला दिवस है।“
यह जगजाहिर है कि पितृपक्ष अपने दिवंगत पूर्वजों को श्रद्धापूर्वक स्मरण करने और उनके प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए ही है। ऐसे में कई सवाल कौंध रहे हैं - तो क्या पिता याद और सम्मान के लिए किसी खास दिन के मोहताज है? तो क्या जीते जी पिता और उसकी संतानों का मूड बने तो सेलिब्रेट भी नहीं करना चाहिए?
ओरहान पामुक की माने तो पिता के दुनिया से विदा होते ही हम भी थोड़ा थोड़ा मरना शुरू कर देते हैं। वैसे सच तो यह है कि हमारी ख्वाहिशें कुलांचे तभी तक भरती हैं, जब तक सामने स्वयं पिता होते हैं।
1910 में वाशिंगटन की रहने वाली सोनारा डॉड नाम की एक महिला ने इस दिन को पहली बार मनाया था। वह अपने पिता से बहुत प्रेरित थीं, जिन्होंने अकेले ही अपने बच्चों की परवरिश की थी। उनकी यही भावना बाद में एक खास दिन के रूप में मनाई जाने लगी और धीरे-धीरे यह परंपरा पूरी दुनिया में फैल गई। काश सोनारा डॉड अगर देख पातीं कि आज पितृप्रेम के नाम पर ऑनलाइन शॉपिंग कार्ट भरे जा रहे हैं, तो शायद फिर से वह मातृ दिवस की मुहिम चला देतीं।
वैसे सच तो यह है कि भूमंडलीकरण के रैपर में बड़े सलीके से हमें भूमंडीकरण परोसा जा रहा है। और हमें भनक तक नहीं। इस तरह के सेलिब्रेशन हमारी विकलांग श्रद्धाओं के मोहताज नहीं। यह महत्वपूर्ण दायित्व इन दिनों बाजार का श्रृंगार है। बलिया-बनारस से लेकर मुंबई-दिल्ली तक बाज़ार हमारे इमोशन का एक्सप्रेस डिलीवरी सर्विस चला रहा है—"अपने पिता को बताएं कि आप उनसे कितना प्यार करते हैं, इस नई ट्रिमर मशीन से!" कभी-कभी लगता है, असली पिता वही हैं जो बच्चों के ‘स्टेटस अपडेट’ में ही ज़िंदा रह गए हैं। क्योंकि असल ज़िंदगी में तो सब बहुत "बिज़ी" हैं न!
आज #father'sday है—मतलब अब वो दिन जब हमें अचानक पापा की याद बहुत ज़्यादा आने लगती है... माध्यम बनते हैं फेसबुक पोस्ट, इंस्टाग्राम स्टोरी और 20% ऑफ वाले गिफ्ट कूपन! जिन पिताओं से सालभर "नेट रिचार्ज करा दो" या "पैसे भेज दो" से ज्यादा बात नहीं होती, वो अब "मेरे आदर्श, मेरे हीरो" बन जाते हैं।
वैसे हर बच्चे का पहला सुपरहीरो पिता ही होता है, लेकिन फादर्स डे आते ही सुपरहीरो की जगह वॉलेट खाली करने वाला विलेन बन जा रहा है इन दिनों! आज फादर्स डे पर बच्चे पिता को गिफ्ट देते हैं—टाई, मग, या "विश्व के सर्वश्रेष्ठ पापा" वाला कीचेन, जो पापा कभी इस्तेमाल नहीं करते। दुकानें खुश, ऑनलाइन सेल बम्पर, लेकिन पिता का चेहरा तब चमकता है, जब बेटा कहता है, "पापा, आप रिटायर हो जाओ, मैं संभाल लूंगा।"
पर हाय, अगले ही पल बेटा पूछता है, "पापा, EMI की अगली किश्त कब है?"
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