24 कैरेट गगनविहारी प्रणब मुखर्जी


विजय शंकर पांडेय 

कभी कहा जाता था कि बंगाल जो आज सोचता है, शेष भारत उसे दस वर्ष बाद सोचता है, आभासी बांग्ला मीडिया में हलचल है. ज्योति बसु सीपीएम के हिस्टॉरिकल ब्लंडर के चलते चूक गए थे. बंगालियों के अरमानों को एक बार फिर पंख लग गए हैं. देवगौड़ा और गुजराल जैसे प्रधानमंत्री बिल्ली के भाग से छींका टूटने पर बने थे. नेचुरल च्वाइस तो कभी नहीं माने जा सकते. सपने देखने का हक सभी को है. उसका मूर्त रूप लेना वक्त के हाथ में है.



प्रणब मुखर्जी एक कुशल राजनेता व प्रशासक ही नहीं, सियासी गणितज्ञ या रणनीतिकार भी माने जाते रहे हैं. हां, वे 24 कैरेट गगनविहारी हैं, कांग्रेस का झंडा-बैनर नहीं रहता तो वे संसद तो दूर, नगर निगम में भी पहुंचने का माद्दा नहीं रखते. वे कच्ची गोलियां खेलने के आदी कभी नहीं रहे. उन्हें पता था कि कब तक कुंडली मार कर 10 जनपथ पर डेरा डाले रहना जरूरी था और कब नागपुर के लिए रिजर्वेशन करवाना है.


बंगाल को कांग्रेस मुक्त करने का श्रेय अगर किसी जाता है तो शत प्रतिशत प्रणब दादा को जाता है. उनके सक्रिय रहते गांधी परिवार के करीब बंगाल कांग्रेस के किसी परिंदे में भी पर मारने की औकात नहीं थी. यह प्रणब मुखर्जी की ही देन है कि बंगाल में आज तृणमूल का शासन है, वरना वहां भले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी रहती, मगर सत्ता में कांग्रेस रहती, तृणमूल का नामोनिशान नहीं रहता. बंगाल में जमीनी स्तर पर संघर्ष करने का माद्दा रखने वाले किसी कांग्रेसी को उन्होंने गांधी परिवार के करीब फटकने नहीं दिया. कोलकाता के गिरीश पार्क स्थित अपने आवास पर बातचीत के दौरान कभी पूर्व केंद्रीय मंत्री अजीत पांजा ने कहा था कि राजीव गांधी ममता बनर्जी और उनके समर्थकों को पर्याप्त तवज्जो देने के हिमायती थे, मगर रोड़ा मठाधीश अटकाते रहे. वाममोर्चा शासन के दौरान विपक्षी कांग्रेस सीपीएम की बी टीम मानी जाती रही. नतीजतन बगावत हुई, रिजल्ट कांग्रेस के विभाजन के रूप में सामने आया.


इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी ने उनके अरमानों पर पानी फेर दिया था. बाद में उनकी पत्नी ने मनमोहन सिंह को आगे कर उनकी मुराद पूरी नहीं होने दी, मगर राष्ट्रपति बना कर उनकी वरिष्ठता और योग्यता को ही पुरस्कृत किया गया, मगर दिल मांगे मोर… हाल ही में हावड़ा में मिले एक पुरनिया ने पूछा कि 92 वर्षीय मलेशियाई पीएम महाथिर मोहम्‍मद को देख 83 वर्षीय प्रणब मुखर्जी के अरमान क्यों नहीं कुलांचे भर सकते? (फोटो क्रेडिट - शुभेंदु पाल)



#3मई2018

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