दुनिया का रंगमंच पर IMF का "पाकिस्तान प्रेम"

 

विजय शंकर पांडेय


पाकिस्तान से एक जिम्मेदार देश होने की उम्मीद ही नहीं की जा सकती है। यही कारण है कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद यह मान लेना कि पाकिस्तान से आतंकवादियों का खात्मा कर लिया जाएगा , बहुत बड़ी भूल होगी. भारतीय सेनाओं को पाकिस्तान से बहुत लंबी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार रहना होगा। मगर संकट गहरा है। कहते हैं कि दुनिया एक रंगमंच है और आजकल इस रंगमंच का सबसे बड़ा प्रायोजक है अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)! जी हाँ, वही IMF, जो एक तरफ तो "वैश्विक आर्थिक स्थिरता" का ढोल पीटता है, दूसरी तरफ पाकिस्तान को बार-बार बेलआउट पैकेज देकर ऐसा लगता है, मानो कह रहा हो, "चलो, भाई, एक और युद्ध का ट्रेलर तो बनाओ!" आइए, इस तमाशे को थोड़ा सटायर की चाशनी में डुबोकर देखें।



कल्पना कीजिए, IMF के मुख्यालय का कैसा नजारा होगा 

एक चमचमाती मेज के इर्द-गिर्द सूट-बूट वाले अर्थशास्त्री बैठे हैं, कॉफी के मग थामे। सामने स्क्रीन पर पाकिस्तान का आर्थिक ग्राफ, जो किसी हॉरर फिल्म के साउंडट्रैक जैसा डरावना है। कर्ज का पहाड़, विकास दर का रेगिस्तान और आतंकवाद के फंडिंग के आरोपों का तूफान। फिर भी, IMF का बॉस, मिस क्रिस्टालिना, मुस्कुराते हुए कहती हैं, "दोस्तों, हमें पाकिस्तान को फिर से बेलआउट देना है। यह हमारा सबसे वफादार 'क्लाइंट' है!" एक जूनियर अर्थशास्त्री हिम्मत करके पूछता है, "मैडम, लेकिन ये पैसे तो फिर हथियारों और अराजक थिंकटैंकों के पास चले जाएंगे।" क्रिस्टालिना हँसते हुए जवाब देती हैं, "अरे, यही तो बिजनेस मॉडल है! युद्ध चलते रहें, हम लोन देते रहें। सतत विकास, समझे? 



दूसरी तरफ, इस्लामाबाद में उत्सव का माहौल है

IMF का नया लोन मिलते ही सरकार ने नया बजट पेश किया : 50% रक्षा पर, 30% कर्ज की किस्त चुकाने पर, 10% नेताओं की विदेश यात्राओं पर, और बाकी 10% में स्कूल-हॉस्पिटल का जुगाड़। एक मंत्री जी टीवी पर बयान देते हैं, "देखिए, IMF हमारी मजबूरी समझता है। हमें अपनी सीमाओं की रक्षा करनी है।" जनता तालियाँ बजाती है, क्योंकि न्यूज चैनल ने बताया कि "पड़ोसी मुल्क" फिर से साजिश रच रहा है। कोई नहीं पूछता कि स्कूलों में किताबें क्यों नहीं हैं, या अस्पतालों में दवाइयाँ क्यों गायब हैं? दुनिया इस ड्रामे को देखकर क्या सोच रही है? कुछ देश तालियाँ बजा रहे हैं, कुछ आँखें मटका रहे हैं। अमेरिका कहता है, "पाकिस्तान हमारा स्ट्रैटेजिक पार्टनर है।" चीन अपनी BRI की किश्तें गिन रहा है। भारत भौहें चढ़ाकर कहता है, "ये लोन तो हमारे बॉर्डर पर गोली बनकर बरसेगा!" लेकिन IMF का जवाब एकदम सधा हुआ है: "हम तो बस आर्थिक मदद करते हैं। पैसा कहाँ जाता है, ये हमारा डिपार्टमेंट नहीं।"


...तो दुनिया किस दिशा में जा रही है?

सीधे सट्टा बाजार की ओर! जहाँ युद्ध एक प्रोडक्ट है, IMF इसका वेंचर कैपिटलिस्ट, और देश इसके डीलर। जनता? वो तो बस दर्शक है, जो टिकट खरीदकर तमाशा देख रही है। और हाँ, अगली बार जब IMF का बेलआउट पैकेज आए, तो पॉपकॉर्न तैयार रखिए। क्योंकि इस रंगमंच का अगला सीन और भी धमाकेदार होगा!

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