विजय शंकर पांडेय
थाली बजी लालू प्रसाद यादव के घर, मिठाई भी बंटी ही होगी। पता नहीं सोशल मीडिया पर बटी या नहीं!!! लग रहा है इसी वजह से फोकट में कड़ाही में तड़क रहा।
वैसे है तो यह नितांत निजी मामला।
बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना क्यों हो रहा? अभी तो उस नवजात को यह भी नहीं भनक होगी, कि उस पर किस किस लेवल पर रिसर्च चल रहा रहा है।
तेजस्वी और राजश्री के घर किलकारी गूंजी। वैसे नाम रखने को लेकर सामान्य तौर पर किसी भी घर में बड़े बुजुर्ग का सर्वाधिकार ही सुरक्षित नहीं रहता है, वीटो पॉवर भी चलता है।
नाम रखा "इराज" — और देश के "नाम विशेषज्ञ" एक्टिव मोड में आ गए। कोई कहे "ये तो फारसी है", कोई बोला, संस्कृत।
समथिंग डिफरेंट वाले दौर में यह कोई आश्चर्य भी नहीं है। लीक से हट कर, यूनिक नाम रखने का चलन इधर बीच बढ़ा है। ढेर सारे पोर्टल तो नाम सुझाने के लिए उपलब्ध हैं। और वहां नामों के अर्थ भी अपने ढंग से सुझाए जाते हैं। कई बार डाइजेस्ट करना मुश्किल होता है। जाहिर है अब लोग इस आप्शन का भी इस्तेमाल करते ही होंगे।
वैसे यह हैरतअंगेज भी नहीं है। इससे मिलता-जुलता यूपी के ही एक ख्यातिलब्ध पुलिस अफसर का भी नाम है।
लालू जी सोच रहे होंगे, "हमरे घर में पोता, नाम हम रखें या ट्विटर वाले चाचा?" एक भाईसाहब तो बोले, "हमारे मुहल्ले के बच्चे का नाम भी अब हम ही रखेंगे!"
सच कहें तो, नाम इराज हो या सूरज, परेशानी उन्हीं को है जिनके घर में न पूड़ी बनी, न पोता आया।
अरे भैया, दूसरों की खुशी में टांग अड़ाना छोड़िए। वरना अगली बार लालू जी नाम रख देंगे—"साइलेंस कुमार", क्या बिगाड़ लेंगे?
इराज का राज? वो तो लालू की हंसी और तेजस्वी की खुशी में छुपा है।
शेक्सपियर चाचा पूछ रहे हैं - काहे लाल पियर हो रहें हैं?
नाम में क्या रखा है?
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