खबरों की भी खबर लें


 विजय शंकर पांडेय 

एक ज़माना था जब बड़े बुजुर्ग कहते थे, “जो अखबार में छपे, वही सच होता है।” 


अब पोता पूछता है, “दादा जी, कौन से ऐप पे छपा था?”



इस दौर में खबरों के गलत या सही होने की कोई गारंटी नहीं है। इसलिए अपने रिस्क पर कोई जोखिम लें। 


मेन स्ट्रीम मीडिया हो या सोशल मीडिया व्हाट्सऐप स्कॉलर हर प्लेटफॉर्म पर मौजूद हैं। टीआरपी ही परम लक्ष्य है। मेन स्ट्रीम मीडिया चिल्लाता है, "ब्रेकिंग न्यूज़! आसमान में उड़ता सॉसर!" सोशल मीडिया जवाब देता है, "अरे, वो तो पड़ोसी का ड्रोन था, लाइक करो!" दोनों में होड़ है—TRP और लाइक्स की जंग। 


आम दर्शक या पाठक पसोपेश में हैं। कैसे फर्जी खबरों की बाढ़ में सही की शिनाख्त करें? वैसे आवाम को गुमराह करना महंगा पड़ सकता है। बचाव के लिए मासूम सा लॉजिक भी है – लव और वार में सब कुछ जायज है। 


बेचारा दर्शक-पाठक, रिमोट और स्क्रॉल के बीच फंसा, सोचता है, "सच क्या, झूठ क्या?" फर्जी खबरों की बाढ़ में सच्चाई डूबती है। जब "हिंदू" सरीखा विश्वसनीय अखबार गच्चा खा सकता है तो हम आप किस खेत की मूली हैं? 


आवाम को बचना है तो दिमाग का Wi-Fi ऑन रखो। हर खबर को Google करो, तीन-चार स्रोत चेक करो। 


अगर चैनल या पोस्ट चीख-चीखकर डराए, समझो मछली फंसाने की जाल है। 


गुमराह करना अब महंगा पड़ सकता है—सोशल मीडिया पर "फैक्ट-चेक" वाले शेर घूम रहे हैं, भले गिनती के हों। 


मेन स्ट्रीम मीडिया टीआरपी की जिम में मसल बना रहा है, तो सोशल मीडिया लाइक की दौड़ में दौड़ते-भागते थक भी नहीं रहा। असली खबर और नकली खबर का फर्क अब इतना धुंधला हो गया है कि खुद खबर भी कन्फ्यूज है, “मैं हूं कौन?”


चाय की दुकान से लेकर वॉट्सएप यूनिवर्सिटी तक, हर कोई "पत्रकार" है। कुछ भी कहो, "सूत्रों के हवाले से" सच बन जाता है। जनता पसोपेश में, पर फिर भी शेयर का बटन दबाने से खुद को रोक नहीं पाती। अब तो लगता है, सच्चाई भी सोच रही होगी, "काश मुझे भी कोई वायरल कर देता!"


समाधान? पहले सोचें, फिर जाँचें, फिर ही विश्वास करें — वरना अगली फर्जी खबर आप ही हो सकते हैं!


सच की तलाश में थोड़ा मेहनत करें, वरना न्यूज़ का तमाशा आपको ही जोकर बना देगा।


युद्ध सिर्फ रणभूमि में ही नहीं लड़ा जा रहा, सोशल मीडिया पर भी तलवारें खिंची हुई हैं। भारत सरकार ने पाकिस्तान समर्थित फेक न्यूज फैलाने वाले 8000 से ज्यादा X अकाउंट्स को ब्लॉक करने का आदेश दिया है। ये अकाउंट्स गलत सूचना, हिंसा भड़काने और भारत-पाक तनाव बढ़ाने में लिप्त थे। सरकार का यह कदम राष्ट्रीय सुरक्षा और अस्थिरता रोकने के लिए उठाया गया है। यह डिजिटल युद्ध में भारत की ओर से एक महत्वपूर्ण कदम है, जो गलत सूचना के प्रसार को रोकने में मदद करेगा।


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