आइंदा से पॉपकॉर्न हाथ में लेकर खबरें देखने बैठा कीजिए, क्योंकि इसके आगे नेटफ्लिक्स का थ्रिलर फीका साबित होगा। बहरहाल, सतर्क रहें, सच्चाई से नहीं — अपने न्यूज चैनलों से! या यूं कहें फेक न्यूज फैक्ट्रियों से!
इधर बीच देश के तमाम न्यूज चैनलों ने “Exclusive! Breaking! Superfast 200!” की आंधी चला दी। स्क्रीन पर आग की लपटें, बैकग्राउंड में ड्रम बीट्स और एंकर ऐसे चिल्ला रहे थे जैसे युद्ध नहीं, WWE का लाइव मैच चल रहा हो। याद भी नहीं रहा कि कहां कहां कल रात कब्जा कर लिया गया था— नक्शे पर नहीं, न्यूज रूम में बैठे बैठे! रिपोर्टर हेलमेट पहनकर स्टूडियो में "सीमा से सीधे जुड़" गए — मोबाइल गेम के नक्शे के साथ।
विश्वसनीयता की ऐसी तैसी कर दी गई कि सच भी शर्मिंदा होकर झूठ के खेमे में शामिल हो गया।
और आज माफी मांग रही है।
हमारे न्यूज चैनल्स उतने ही भरोसेमंद हैं, जितनी व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी। स्टूडियो में एंकर मेकअप लगाए, चश्मा चढ़ाए, दुनिया को "सच" बेच रहे, पर स्क्रिप्ट में फैक्ट नदारद है। विज्ञापन का ब्रेक आते ही "सच" बदल जाता है। युद्ध सरीखे हाल में जिम्मेदारी? अरे, ये तो टीआरपी की जंग में मशगूल हैं।
जनता? वो रिमोट थामे, सर्कस देख रही है। सटायर खत्म, पर चैनल्स का ड्रामा अनलिमिटेड!
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