मौसम का मिज़ाज, गोया किसी बेरोज़गार का दिल

 व्यंग्य

विजय शंकर पांडेय


मौसम का मिज़ाज ऐसा हो गया है जैसे किसी बेरोज़गार का दिल—कभी सूखा, कभी बाढ़, और ज़्यादातर समय गरमाया हुआ। अप्रैल में लू चल रही है, मई में बर्फबारी की आशंका, और जून में तो शायद बारिश भी एसी के साथ आएगी, ईएमआई पर। अब बात करें पेड़ों की—तो जो बचे हैं, वो भी शॉर्ट नोटिस पर इस्तीफा देने की तैयारी में हैं। कहते हैं, "हमसे अब फोटोसिंथेसिस नहीं होता भाई!" पक्षी तो पहले ही माइग्रेशन कर गए—अब इंस्टाग्राम पर पोस्ट कर रहे हैं, “अंटार्कटिका में बर्फ का आनंद ले रहा हूँ, यहाँ कोई इंसान नहीं है, बस शांति ही शांति है! और इंसान? हम तो बस मीम बनाकर, ट्वीट ठोककर और एसी का तापमान 16 पर सेट कर के सोच रहे हैं कि 'जलवायु परिवर्तन' पर कंट्रोल हो जाएगा। कुछ लोग तो इसे एक फैशन टर्म बना चुके हैं—"आज बहुत क्लाइमेट चेंज लग रहा है ना यार!" जल संकट ऐसा है कि अब शादी के कार्ड पर लिखा जा रहा है: “शादी में गिफ्ट न लाएं, एक बाल्टी पानी साथ लाएं।”



डोसे तवे से सीधे डिलीवर किए जाते हैं


और मौसम इतना अनप्रेडिक्टटेबल हो गया है कि अगर शेर की सवारी करनी हो तो पहले मौसम का हाल पूछना ज़रूरी है—“शेर गरमी में भी मिल पाएगा या चला गया एसी वाले जंगल में?” इस सब के बीच सूर्यदेव मुस्कुरा रहे हैं। उनके पास अब अर्थ फ्राई नाम का स्टार्टअप है, जहां ग्रहों पर तापमान बढ़ाकर डोसे तवे से सीधे डिलीवर किए जाते हैं—"नो आयल, जस्ट सोलर ग्रिलिंग." तो अगली बार जब सूरज सर पर हो, तो टोपी, पानी और थोड़ा सा सेंस ऑफ ह्यूमर ज़रूर साथ रखें। क्योंकि अब ये जलवायु संकट नहीं, 'सूर्यदेव की रसोई' बन चुकी है—जहाँ सब कुछ पक रहा है, सिवाय हमारी समझ के। आपको क्या लगता है, अगला मेन्यू क्या होगा सूर्यदेव का? अब तो ऐसा लग रहा है कि सूर्यदेव खुद रसोइया बन गए हैं — और पृथ्वी उनकी तवा! तापमान कुछ यूं बढ़ा है कि अगर छत पर दो अंडे फोड़ दो, तो बिना गैस जलाए आमलेट बनकर तैयार। अब समझ आ रहा है कि "ग्लोबल वॉर्मिंग" को ग्लोबल कुकिंग क्यों नहीं कहा जाता?


तंदूर में तब्दील धरती


इस साल गर्मी कुछ ज़्यादा ही पसीना निकाल रही है और झुलसा भी रही है। मौसम विभाग कह रहा है, “बाहर मत निकलो, नहीं तो खुद ही तंदूरी बन जाओगे।” मगर सरकार कह रही है, "एसी का बिल भर सकते हो तो लोकतंत्र में कुछ भी संभव है!" दूसरी ओर किसान भाई खेत में जाकर सोच रहे हैं, “बीज डालूं या पॉपकॉर्न के दाने, दोनों में फायदा है!” अब देखिए न, पहले लोग दोपहर में नींबू पानी पीते थे, अब नींबू खुद ही पानी मांग रहा है। नदियाँ मानो रिटायरमेंट पर चली गई हों, और कुएँ तो इतने सूख गए हैं कि अब गूगल मैप से भी नहीं मिलते। पानी के टैंकर का आना अब मोहल्ले में IPL मैच से कम नहीं—पूरा मोहल्ला बाल्टी लेकर स्टेडियम मोड में आ जाता है। गोया सूर्यदेव ने ऐलान कर दिया है, "अब डोसा बनाकर ही छोड़ेंगे, धरती को तवे पर सेंकेंगे!" जलवायु संकट ने तो कमाल कर दिया—तापमान ऐसा कि सड़क पर ऑमलेट बन जाए राहगीर। जलवायु संकट ने मौसम को ऐसा बिगाड़ा कि अब मानसून भी व्हाट्स ऐप पर "टाइपिंग..." दिखा कर गायब हो जाता है। 




पर्यावरणविद् प्लास्टिक की बोतलों में पानी पीते हैं


जल संकट ने तो नदियों को भी छुट्टी दे दी, नल सूखे, टैंकर मालामाल। इंसान चिल्ला रहा, "एसी चला दो, सूर्यदेव!" पर सूर्यदेव बोले, "बिजली बचाओ, पसीना बहाओ!" कार्बन उत्सर्जन बढ़ा, तो सूर्यदेव ने गैस सिलेंडर फोड़ दिया—धुआं ही धुआं। पर्यावरणविद् मीटिंग करते हैं, प्लास्टिक की बोतलों में पानी पीते हैं। नेताजी बोले, "वृक्ष लगाओ!" पर खुद जंगल कटवाकर रिसॉर्ट बनवा लिए। सूर्यदेव हंसते हुए बोले, "डोसा तैयार है, अब चटनी बनाओ!" धरती तप रही, और हम सब टिकट बुक कर रहे—मंगल ग्रह की सैर, क्योंकि वहां शायद मौसम ठंडा हो! गांवों में कुएं सूख चुके हैं, शहरों में पानी मीटर देखकर निकलता है, और इंसान सोच रहा है—"नहाऊं या पिएं?" किसान बारिश के इंतज़ार में आसमान नहीं, अब मौसम ऐप देख रहा है। सूरज मुस्करा रहा है, मानो कह रहा हो, "अब तवा गर्म है, खुद ही सोच लो—डोसा बनना है या कुछ कर लेना है!" समस्या गंभीर है, मगर हम मीम बनाकर सोच रहे हैं, जलवायु बदलाव भी ट्रोल से डर जाएगा। सूर्यदेव तो शायद अगली बार पराठा सेकें!


तापमान ऐसा कि सड़क पर ऑमलेट बन जाए राहगीर


गोया सूर्यदेव ने ऐलान कर दिया है, "अब डोसा बनाकर ही छोड़ेंगे, धरतीवालों को तवे पर उलट पलट कर सेंकेंगे!" क्लाइमेट चेंज ने तो कमाल कर दिया—तापमान ऐसा कि सड़क पर ऑमलेट बन जाए राहगीर।

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