पूरा घर मुंहनोचवा या चोटीकटवा टाइप आतंक के साए में



विजय शंकर पांडेय 

मेरा पूरा घर मुंहनोचवा या चोटीकटवा टाइप आतंक के साए में था। मैंने पूछा - क्या हुआ? चेहरे पर किसी सुपर पॉवर का आतंक लिए पत्नी बोली - छोटू के अंडरवियर पता नहीं कैसे गायब होते जा रहे हैं।


जिंदगी के सफर में

सहेज कर कपड़े तो सलीके से रखती नहीं हो। मिलेंगे कैसे..... खैर छोड़ो.... नया ले आते हैं फिलहाल।

जितना संभव होता है कर देती हूं। और तो कोई घर के काम में मदद करता नहीं है। अगर मैं न एलर्ट रहूं तो बाप-बेटे रोज नहाने के बाद तौलिया लपेटे ही दिन काटोगे।

खैर बेवजह तिल का ताड़ बनाने के नए अंडरवियर बनियान खरीदने की शर्त पर एमओयू पर अदृश्य हस्ताक्षर हो गया। मगर यह घटना हफ्ते दस दिन के अंतराल में तीन या चार बार हो गई. अब कितना नया खरीदा जाए। धीरे-धीरे मामला यहां तक बढ़ा कि घर के अन्य सदस्यों के भी कपड़े गायब होने लगे। यहां तक कि मेरे भी... मीडिया वालों से करीबी संपर्क होने के बावजूद बस मैंने प्रेस कांफ्रेंस नहीं किया था....हालात कंट्रोल से बाहर हो चुके थे। घर के चारों तरफ कई चक्कर लगाया, अपने छत पर भी खंगाला, मगर कोई सुराग हाथ नहीं लगा।

संकट गहराता जा रहा था। यूपी में पत्रकारिता करते हुए पहली बार मुंहनोचवा टाइप फीलिंग आने लगी। यह घटना दो-तीन साल पहले की है। करीब 15-16 साल पहले मिर्जापुर के तत्कालीन डीएम ने मुंहनोचवा का साक्षात दर्शन कर तहलका मचा दिया था। इस खबर को छापने के बाद अगले दिन एक पड़ोसी से बहस हो गई थी। मेरे तर्कों का जवाब न दे पाने की स्थिति में उन्होंने मुझे ‘शाप’ देते हुए कहा - जाके पाँव न फटी बिवाई, वह क्या जाने पीर पराई ... जब मुंहनोचवा से पाला पड़ेगा न बच्चू... तब सारी पत्रकारिता और संपादकी धरी रह जाएगी। एक बार तो मुझे लगा कि शाप अब असर दिखा रहा है।

मेरी टेंशन की वजह दूसरी भी थी। इस मकान को हम पूरी तरह सुरक्षित मान रहे थे। हालांकि पत्रकार के घर में होगा भी क्या... कोई अंबानी का बंगला थोड़े ही है। फिर भी जो कपड़े, बर्तन इत्यादि है, वही तो थाती है। अगर कोई इस तरह की वारदात को अंजाम दे रहा है तो क्या गारंटी है कि वह अपने कारोबार का विस्तार न करे। बच्चों पर तो कोई खास प्रभाव नहीं था, मगर पत्नी पड़ोस के मंदिर में प्रसाद इत्यादि चढ़ाने का काल्पनिक वादा कर चुकी थी। संभव है कुछ और भी कमिटमेंट की हो। मगर मारे गुस्से मुझे नहीं बताई। उनकी नजर में सबसे बड़ा अपराधी मैं ही था। निठल्ले पत्रकार से शादी करने की जो फीलिंग उनके चेहरे पर साफ झलक रही थी, वह शब्दों में बयान करने की क्षमता मेरे पास नहीं है। ऐसा लगता किसी दूसरे प्रोफेशनल से ब्याही होती तो अब तक सीबीआई जांच की मंजूरी मिल गई होती।

खैर... भोर के चार-पांच बजे के करीब अचानक मेरी बालकनी में हलचल हुई. खिड़कियों से बाहर झांका तो बंदरों का झुंड दिखाई पड़ा..... कमरे से एक पाइप का टुकड़ा लिए बाहर निकलने की कोशिश करने लगा तो एक बड़ा सा बंदर मोगांबो टाइप आंखें तरेरते हुए गुर्राया। मैं पीछे हट गया। उथल पुथल मचाने के बाद वे जब जाने लगे तो वहां सूखने के लिए फैलाए गए एक-दो बनियान पहनते हुए रवाना हुए। लूट की वारदात को मेरी आंखों को सामने अंजाम दिया जा रहा था, मैं असहाय था....थोड़ी देर बाद मैं हिम्मत जुटाकर उनका पीछा किया, मगर वे निकल लिए। उनके जाने के रास्ते का अनुमान लगा मैं छत के ऊपर टंकी रखने के लिए बनाए गए छज्जे पर जब चढ़ा तो हतप्रभ रह गया... मेरे घर के कपड़े थोक के भाव में वहां पड़े मिले.... वहां ऐसे भी कपड़े मिले जिसके गायब होने की हमे अभी भनक भी नहीं थी।

#जिंदगी_के_सफर_में


14 जुलाई 2018


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