हवाएं ही करेंगी रौशनी का फैसला

 

विजय शंकर पांडेय 


नेपाल के नौजवानों ने फेसबुक पर लिखा—“हम आख़िरी पीढ़ी हैं जिसे आपने बेवकूफ़ बनाया।”

नेताओं ने पढ़ा और माथा पकड़ा। क्योंकि वे तो समझ रहे थे कि असीमित डेटा पैक की तरह मूर्ख बनाने का ऑफ़र हमेशा वैलिड रहेगा। लेकिन पता चला कि यह स्कीम अब एक्सपायर हो गई है।



नेपाल की सड़कों पर युवाओं का गुस्सा देखकर बाकी दक्षिण एशियाई देश भी सोच में पड़ गए हैं। पाकिस्तान वाले पूछ रहे हैं—“भाई, यहाँ भी ट्रेंड करवा दो न!” श्रीलंका वाले बोल रहे हैं—“हम तो पहले ही राष्ट्रपति भवन में चाय पी चुके हैं, अब क्या करें?” और भारत वाले? यहाँ के युवा फ़िलहाल दो काम में लगे हैं—आधे रील बना रहे हैं “संघर्ष का साउंड” लगाकर, और आधे प्रधानमंत्री के मेमोज़ में टैग कर रहे हैं: “सर, नौकरी दे दो प्लीज़।”


नेताओं की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उनके पुराने जुमले अब रीसायकल बिन में पड़े हैं।

“हम युवाओं का भविष्य संवारेंगे”—यह लाइन अब इतनी घिस चुकी है कि इसे सुनकर बेरोज़गार लड़के भी कहते हैं—“भाई, ये तो मेरे बाबा को भी बोला गया था।”


असल में, युवा अब 4G स्पीड से सवाल पूछते हैं और नेता अब भी 2G जुमलों में जवाब देते हैं।

नतीजा—कनेक्शन फेल।


और फेसबुक पर लिखा यह वाक्य—“आख़िरी पीढ़ी”—नेताओं के लिए वैसे ही है जैसे किसी हॉरर फ़िल्म में अचानक बैकग्राउंड म्यूज़िक बंद हो जाए।

क्योंकि अगर आख़िरी बार जनता ने यह ऐलान किया था तो डायनासोर विलुप्त हो गए थे।

अब नेता सोच रहे हैं—“हमारे लिए भी क्या यही पैकेज एक्टिवेट हो गया है?”


दक्षिण एशियाई देशों के युवाओं का हाल यह है कि वे अब “विकास” नाम का कोई नया ऐप डाउनलोड नहीं करना चाहते। उनका कहना है—“भाई, यह ऐप हर बार वायरस लेकर आता है। फोन भी हैंग, और डेटा भी चोरी।”


सबसे ज़्यादा कॉमेडी यह है कि जब युवा कहते हैं—“हमें अब उल्लू मत बनाओ”—तो नेता गंभीर चेहरे से जवाब देते हैं, “बिल्कुल नहीं बेटा, अब तो हम आपको सीधा ‘ईगल’ बनाएंगे।”

मगर जनता जान गई है कि यह ईगल नहीं, वही पुराना उल्लू है—बस पंखों पर स्टिकर नया चिपका है।


तो, भाइयों और बहनों, नेताओं की अब हालत वैसी है जैसे कोई जादूगर बच्चे के सामने वही पुरानी टोपी से कबूतर निकालने की कोशिश करे—और बच्चा कह दे, “अंकल, ये तो फ्लिपकार्ट से मंगाया है न, सस्ती क्वालिटी का है।”


याद रखिए: जब कोई पीढ़ी यह ठान ले कि उसे अब और बेवकूफ़ नहीं बनना, तो सिस्टम की कुर्सियाँ वैसे ही हिलती हैं जैसे मच्छर भगाने पर चारपाई।

और तालियाँ?

भाई, वो तो अब सड़क पर गूंज रही हैं—“जनता जाग गई है, ओ नेता भाग गए हैं!”



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