भरोसे का हिमस्खलन

 विजय शंकर पांडेय 



लद्दाख फिर खबरों में है।

पहाड़ों ने भी अब सियासत का ताप महसूस कर लिया है।

बर्फ पिघल रही है, मगर दिल्ली की कुर्सी जमी हुई है।



लोग कह रहे हैं – हमें राज्य चाहिए।

नेता कह रहे हैं – आपको शांति चाहिए।

सरकार कह रही है – आपको सेल्फी चाहिए।


वादियों का दर्द गूगल मैप नहीं दिखाता।

सैन्य छावनियाँ तो हैं, पर स्कूल और अस्पताल गायब हैं।

पहचान की बात होती है, तो जवाब मिलता है – “ड्रोन से निगरानी है, चिंता मत करो।”


लद्दाखी कहते हैं – अस्तित्व बचाओ।

सिस्टम कहता है – पर्यटन बढ़ाओ।

विदेशी पर्यटक आएं, डॉलर लाएं, और आप चुपचाप याक चराएं।


पहाड़ रोएं या लोग, सियासत को फर्क नहीं।

वहां बर्फ गिरे तो खबर – “व्यू पॉइंट।”

वहां लोग गिरे तो खबर – “सुरक्षा कारण।”


लद्दाख का सवाल सिर्फ राज्य का दर्जा नहीं,

ये भरोसे का हिमस्खलन है।

पहचान का ग्लेशियर है।

और अस्तित्व की जंग है।



कुर्सीधारी कहते हैं – “इंतज़ार करो।”

लद्दाख कहता है – “और कितना बर्फ़ बनकर जमें?”


यहां बर्फ पिघलती है, मगर सत्ता का दिल नहीं।

यही है असली कोल्ड वॉर।

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