सियासत का नागपंचमी महोत्सव

 विजय शंकर पांडेय 


देश की राजनीति बड़ी विचित्र है। यहाँ कोई नागपंचमी सिर्फ कैलेंडर में नहीं आती, बल्कि जब-तब दिल्ली की गलियों में भी उतर आती है। और इस बार तो नागपंचमी की पूजा आरएसएस प्रमुख ने ही कर डाली—सीधे मोदी सरकार की कमजोर नस दबाकर।  



अब सोचिए, जब वॉशिंगटन के व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप "भारत की गर्दन पकड़ने" की मुद्रा में बैठे हों, तब दिल्ली में किसी को नस दबाना कैसा लगता होगा? बिल्कुल वैसा ही, जैसे डॉक्टर के पास इंजेक्शन लगवाने गए हों और नर्स कह दे—“ओहो! नस ही नहीं मिल रही।” 


मोदी जी की हालत अभी वही है। अमेरिका का दबाव एक तरफ, और नागपुर का दबाव दूसरी तरफ। बेचारे प्रधानमंत्री का चेहरा देखकर लगता है, जैसे किसी ने गूगल मैप पर "Way Out" का बटन ही हटा दिया हो।  


भागवत जी ने काशी और मथुरा का मुद्दा उठा दिया है। अब ये विषय उठे तो लगता है मानो पुरानी दराज से कोई बही-खाता निकल आया हो—“ओह, ये वाला हिसाब अभी तक बाकी है!” जनता तो महंगाई और बेरोजगारी की किस्तें भरने में लगी थी, लेकिन भागवत जी ने अचानक याद दिला दिया कि किस्तों के अलावा किस्से भी अधूरे पड़े हैं। 


मोदी जी के लिए यह स्थिति वैसी ही है जैसे शादी में बारात आ चुकी हो और दूल्हे का सेहरा रहस्यमय ढंग से गायब हो जाए। अमेरिका पूछ रहा है—“Tell me, what’s your stand on us?” और इधर नागपुर से आवाज आ रही है—“बताइए, काशी-मथुरा कब लौटा रहे हैं?” बेचारे मोदी जी दोनों तरफ फंसे हैं, जैसे ऑटोवाले से पुछ लो—“भैया, मीटर से चलोगे?” और जवाब आए—“साहब, मीटर तो चलता है, लेकिन पेट्रोल नहीं है।” 


स्थिति हास्यास्पद भी है और गंभीर भी। अमेरिका ने गर्दन पकड़ी है, नागपुर ने नस दबाई है। प्रधानमंत्री जी को सांस भी लेनी है और मुस्कुराना भी है। अंतर्राष्ट्रीय मंच पर जाकर मुस्कुराना वैसा ही लगता है जैसे कोई गायक बिना सुर के आलाप मार दे—तालियां तो पड़ती हैं, पर कान से खून भी निकलता है। 


भागवत जी जानते हैं कि इस वक्त नस दबाने का असर दोगुना होगा। क्योंकि मोदी जी चुनावी मोड में हैं और चुनावी मोड में नस दबना वैसा ही है, जैसे एग्जाम हॉल में निगरानी शिक्षक आपके पीछे खड़े हों। 


अंत में जनता सोच रही है—काश! काशी और मथुरा की खलबली से पहले महंगाई की खलबली शांत हो जाती। पर यह देश है साहब! यहाँ प्राथमिकता हमेशा वही होती है, जो जनता की डायरी में नहीं, बल्कि सत्ता की डायरी में लिखी हो।

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