विजय शंकर पांडेय
तानाशाही सड़क है—
सीधी, चमचमाती,
लालबत्ती सिर्फ़ जनता के लिए,
हरी हमेशा शासक के लिए।
लोकतंत्र कहता है—
यहाँ दोतरफ़ा रास्ते हैं,
मगर स्टीयरिंग हमेशा सरकार पकड़े रहती है।
जनता ब्रेक दबाती है,
सिस्टम एक्सीलरेटर।
नतीजा वही ट्रैफिक जाम।
नेता कहते हैं—
“आपकी आवाज़ सुनी जाएगी।”
फिर तुरंत हॉर्न बजा देते हैं—
“चुप रहो, रास्ता रोको मत।”
नियम सबके लिए बराबर हैं,
बस अपवाद वही जिनके पास
वोटों की नंबर प्लेट है।
जनमानस भी समझदार है,
अब तो बिना सिग्नल पार करना
उसकी आदत हो गई है।
जिसे लोकतंत्र कहा जाता है,
वह दरअसल चौक का गोलचक्कर है—
गाड़ी चाहे जिस लेन से चलो,
लौटकर वहीं आना है।
तानाशाही में सड़क एकतरफ़ा है,
कम से कम कन्फ्यूज़न तो नहीं।
लोकतंत्र में हर मोड़ पर
“कार्य प्रगति पर है"' लिखा मिलता है।
आख़िर जनता भी
रफ़्तार की नहीं,
धैर्य की परीक्षा देती रहती है।
और सरकार?
कभी ट्रैफिक पुलिस,
कभी रोड रोलर।
बस जनता हमेशा पैदल यात्री।
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