सब्जी बनाने की विधि सुन मैं हदस गया

 विजय शंकर पांडेय 

न्यूज रूम और सब्जी मंडी में बुनियादी फर्क क्या है? एडीटरी तो कहीं भी शुरू हो सकती है। एक नहीं, तीन तीन वरिष्ठ, गरिष्ठ, बलिष्ठ पत्रकार सब्जी खरीदने के लिए आज दशाश्वमेध घाट मंडी में हैं। ये यहां भी चश्मे की मदद से पूरी शिद्दत से एक्सक्लूसिव सब्जी छांट रहे हैं। साथ में एक कोआर्डिनेटिंग एडिटर भी हैं। सीधे कलकत्ता से आए हैं। 


ट्रेडिशनल तो बिल्कुल नहीं चलेगी। इनकी डिमांड भी अजीब अजीब है। नाम सुनते ही पहले उसे यहीं खड़े खड़े वैल्यू ऐडेड कर देते हैं। फलां सब्जी को खाने के क्या क्या फायदे हैं। तब तक साथ में खरीदारी कर रही अन्य महिलाओं की ये बाइट भी ले लेते हैं। बिल्कुल एक्सक्लूसिव इंटरव्यू। इन विलक्षण सब्जियों को कैसे कैसे बनाया जा सकता है। 


यक्ष प्रश्न तो यह भी है कि भौजाइयां तो अब इन्हें घास डालती नहीं होंगी। तो फिर इनकी सब्जियों को बनाता कौन होगा? बहुएं या बेटियां? ये यहां से ज्ञान प्राप्त कर घर पहुंच उन्हें बनाने के तरीके ब्रीफ करते हैं? तो क्या ये सब्जियां सिर्फ इनके लिए बनती होंगी? क्योंकि इतना रिसर्च इतनी मशक्कत कर तो आज के टू मिनट नूडल वाले बच्चे खाते नहीं है। 






इन्ही में से किसी एक को पटाइए सारा राज फाश हो जाएगा। इनके भर का एक कटोरी में बना इन्हें परोस देती होंगी। बाकी कूड़े में डाल गंगा नहा लेती होंगी। वे अपने बारे में नहीं... दूसरे वाले के बारे में बता रहे हैं। इसलिए मीडिया तिल का ताड़ न बनाए। 


आज की लीड सब्जी है - सनई का फूल। सेकेंड लीड है सतपुतिया, अभी जिउतिया में तकरीबन दो हफ्ते का समय है। 

मगर.... बुढ़ी काकी याद है न? चच्चा प्रेमचंद भी इसी जिले के थे भई। तभी वे इतनी संजीदगी से उस कैरेक्टर को कंसीव किए। हाल ही में एक दिन इस गैंग की जुबानी कमलगट्टे की सब्जी बनाने की विधि सुन मैं हदस गया था। भला बताइए इतनी मशक्कत के बाद अगर कोई सब्जी बनानी पड़े तो......। 

खाने के लिए उर्जा कहां बची रहेगी? 


#किस्सागोई #बनारस के गौरव #आज #अखबार के सौ साल पूरे होने पर #विशेष #एक्सक्लूसिव

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