भेड़िया चाहे जो कहे, भूख उसका धर्म है

 विजय शंकर पांडेय 



युद्ध के दौरान भेड़िया शाकाहारी होने की घोषणा कर रहा है..!


भेड़िया बोला—अब मैं घास खाऊंगा।


हिरण ने तालियाँ बजाईं, मगर दूरी बनाकर।


जंगल ने चैन की सांस ली, मगर भरोसा नहीं किया।


भेड़िया टीवी पर आया, आँखों में ग्लिसरीन डाला।


बोला—मेरा दिल अब प्रेम से धड़कता है।


गाय ने पूछा—क्या दाँत दान कर दिए?


भेड़िया बोला—नहीं, लेकिन अब मैं केवल फल खाऊंगा।


सियार ने ठहाका लगाया—फल? या फलाने को?


खून की बूँदें अभी भी जबड़े से टपक रहीं थीं।


फिर भी चैनल ने लिखा—“शांति का प्रतीक बना भेड़िया”। 

नोबेल शांति पुरस्कार का प्रबल दावेदार बताया।


मेमनों ने सेल्फी ली, स्टोरी में डाला—


शांति दूत शिकारी।


चुनाव पास थे।


भेड़िया ने वादा किया—हर पेड़ पर घोंसला मिलेगा।


चिड़ियों ने भी भरोसा कर लिया।


फिर रात आई।


चाँद निकला और भेड़िया अपने असली रूप में आया।


घास पर नहीं, गले पर नजर गई।


और सुबह… फिर एक शोक सभा हुई।


जंगल अब जान गया—


जो जबड़े में बदलाव नहीं लाए,


वो सिर्फ नाटक करते हैं।


भेड़िया चाहे जो कहे, भूख उसका धर्म है।


और युद्ध के समय जो शांति की बात करे—वो अगला शिकार ढूंढ रहा होता है।


#विजय_शंकर_पांडेय 


#peacefulpredator





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