शिक्षित आबादी उनके लिए खतरे की घंटी है

 विजय शंकर पांडेय 



उन्हें कुर्सी से ज़्यादा किताबें डराती हैं।

वे नहीं चाहते कि जनता सवाल पूछे।

वो चाहते हैं कि जनता लाइन में खड़ी रहे 

— वोट देने के लिए या राशन लेने के लिए।


शिक्षित आबादी उनके लिए खतरे की घंटी है।

क्योंकि पढ़ा-लिखा आदमी नारेबाजी नहीं, 

निडर की तरह तर्क करता है।

उसे "विकास" की परिभाषा में जीडीपी नहीं, नौकरी चाहिए।



उसे "देशद्रोह" का मतलब संविधान से समझ आता है।

इसलिए तो पाठ्यक्रम से इतिहास गायब हो रहा है,

और भूगोल सिर्फ सीमाओं तक सीमित हो गया है।

कविता, कला और आलोचना अब "वामपंथी" हो गई हैं।


लोग अगर पढ़ गए, तो वोट जाति नहीं, नीति पर देंगे।

इसलिए अंधभक्ति को 'देशभक्ति' 

और शिक्षा को 'षड्यंत्र' कहा जा रहा है।


क्योंकि जहां किताब खुलती है, 

वहां आंख भी खुल जाती है।

जाहिर है आंख खुलेगी तो राज़ भी खुलेंगे।





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