हर संकट को मस्ती में बदलने का हुनर



विजय शंकर पांडेय 

आज जनता कर्फ्यू की पांचवीं सालगिरह है और लॉकडाउन भी दो दिन बाद पांच साल हो जाएगा। पांच साल! क्या टाइम फ्लाईज! कुछ यादें तो ऐसी हैं, जिनसे हम अभी तक बाहर नहीं निकल पाए हैं। पहले हम कहते थे, “घर से बाहर निकलना है, चलो कहीं घुम कर आते हैं।” अब कहते हैं, “घर में रहकर, बाहर की यादों को सोशल मीडिया पर अपडेट करना है। लॉकडाउन के पहले हमने कभी सोचा नहीं था कि एक दिन ऐसा आएगा जब हम अपने घरों में बैठे-बैठे सभी कौशल सीखेंगे—खाना पकाना, घर का काम करना, और हां, सबसे अहम—सोशल मीडिया पर पोस्ट करना या रील्स बनाना और समय गुजारना। औसतन छह सात घंटे हम भारतीय सोशल मीडिया को देते हैं। पांच साल में हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि हम अब दुनिया के सबसे बड़े वर्चुअल अस्तित्व वाले प्राणी बन गए हैं! आने वाली नस्लें जब ये इतिहास पढ़ेंगी तो शायद सोचेंगी, “क्या चमत्कारी लोग थे वो! इनकी दूरदर्शिता का अंदाजा नहीं था, इन्हें हर संकट को मस्ती में बदलने का हुनर था!”


किसी ने नहीं सोचा था कि हमारी दुनिया बदलने जा रही 


मार्च 2020 में जब राष्ट्रीय स्तर पर पहले जनता कर्फ्यू और दो दिन बाद लॉकडाउन की घोषणा हुई थी, तब किसी ने नहीं सोचा था कि हमारी दुनिया बदलने जा रही है। पांच साल में न जाने कितने नए सबक हमने सीख लिया। घर पर ही जिम, ऑफिस, रेस्टोरेंट, और थियेटर! अब तो घरों में चाय बनाने की भी प्रतियोगिताएं होने लगी हैं और ऑनलाइन क्लासेस के ‘मास्टर जी’ भी घर बैठे एवलेवल है। ज्यादातर खरीदारी आनलाइन होती जा रहा है। यहां तक कि बना बनाया आनलाइन मंगाकर खाने का चलन बढ़ा है। तब हमें उम्मीद थी कि लॉकडाउन सिर्फ एकाध महीना रहेगा, लेकिन उसकी यादों के आगोश में पांच साल का 'शानदार' अनुभव हमें मिला। वैसे भी, अब हम सभी अपने घर के 'लॉकडाउन सेंटर' के विशेषज्ञ बन चुके हैं। 


बफरिंग की वजह से मंगलसूत्र नहीं दिखा, दोबारा डालो!


हम अभी भी "नई सामान्य स्थिति" में जी रहे हैं—जहाँ "सामान्य" का मतलब है कि आपका कुत्ता आपका सबसे अच्छा दोस्त है और आपकी मम्मी अब भी कहती हैं, "बाहर जाना हो तो आवश्यक सावधानी बरतो!" पहले हम सोचते थे कि लॉकडाउन हमें एकजुट करेगा। हाँ, कर तो दिया—स्क्रीन पर! अब दोस्तों से मिलने का मतलब है "लिंक भेजो," और रिश्तेदारों का हालचाल पूछना यानी "ग्रुप में स्टिकर डाल दो।" शादी-ब्याह भी ऑनलाइन हो गए—दूल्हा-दुल्हन स्क्रीन पर फेरे लेते हैं, और मेहमान नीचे कमेंट करते हैं, "बफरिंग की वजह से मंगलसूत्र नहीं दिखा, दोबारा डालो!"


"कनेक्टेड" होने के चक्कर में इतने डिस्कनेक्ट हो गए 


सच कहें तो हमारी दुनिया बदल गई है। यह आम शिकायत है कि मुहल्ले में भी लोग एक दूसरे के यहां बिना जरूरत नहीं जाते। बहुत जरूरी न हो तो हालचाल तक लेने की जहमत नहीं मोल लेते। अब बाहर निकलने की जगह हम "वर्चुअल वॉक" करते हैं—VR गॉगल्स लगाकर पार्क की सैर। दादी माँ भी अब "हाय राम" की जगह "हाय गूगल" कहती हैं। वैसे राम नाम भी डिजिटली लेने पर जोर है। विडंबना ये है कि हम "कनेक्टेड" होने के चक्कर में इतने डिस्कनेक्ट हो गए हैं कि अब असली गले मिलने से डर लगता है। बीच बीच में मीडिया संक्रमण का शिकार होती रहती है। इससे डर ताजा रहता है कि कहीं कोई नया वेरिएंट न चिपक जाए! तो चलिए, इस ऐतिहासिक लॉकडाउन को सेलिब्रेट करते हैं—मास्क लगाकर, सैनिटाइज़र थामकर, और वह भी आनस्क्रीन!


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21 मार्च 2025

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