सतुआ सिर्फ भोजन नहीं, एक लाइफस्टाइल है

 व्यंग्य


सतुआ के चार यार, मरीचा, चटनी, प्याज और आचार

विजय शंकर पांडेय 

हर साल सतुआन आता है, बिल्कुल बांग्ला नववर्ष पोइला बोइशाख, मिथिला नववर्ष और जुड़-शीतल त्योहार की तरह। हम सबको सतुआ खिला-खिलाकर पलथी मरवा जाता है। अब देखिए, ये कोई मामूली त्यौहार नहीं है। मिथिला में तो विधिवत चूल्हा बंद रहता है। ये उस महान आहार का पर्व है, जिसे खाते ही आपके पेट में लोकतंत्र बस जाता है, और आत्मा कह उठती है, "सतुआ जिंदाबाद, पिज़्ज़ा-बर्गर मुर्दाबाद!"



सतुआ, यानी वह भोजन जो न गैस जलवाता है, न बर्तन मांजवाता है, और न ही शेफ बनने का स्वप्न दिखाता है। बस एक लोटा पानी, एक कटोरी चना सत्तू, थोड़ा नमक-नींबू, और हो गया लंच तैयार। ऐसा भी क्या हाइटेक सिंप्लिसिटी है, जो आज के जमाने में मसाला डोसा तक को फेल कर दे!


अब आइए बात करें सतुआ के चार यारों की – मरीचा, चटनी, प्याज और आचार। अगर सतुआ शेर है, तो ये चार उसके पंजे हैं। मरीचा वो, जो नाक से धुआँ निकाल दे, ताकि शरीर से पसीना और आत्मा से पाप दोनों निकल जाएं। चटनी – समाजवाद की सच्ची अनुयायी – जो दाल, धनिया, टमाटर, सबको एक मिक्सी में घुमा देती है, बिना भेदभाव। प्याज – गरीबों का गुलाब, जो हर लच्छे में आंसू देता है और याद दिलाता है कि सच्चे त्यौहार में थोड़ी पीड़ा भी ज़रूरी है। और अंत में आचार – भारत का सबसे आत्मनिर्भर खाद्य पदार्थ, जो सालों तक अकेला बोतल में जीता है, फिर भी स्वाद में नेता से तेज़ रहता है।


अब आप पूछेंगे, “भाई साहब, सतुआ खाकर पलथी क्यों मारनी है?” देखिए, ये सिर्फ भोजन नहीं, एक लाइफस्टाइल है। पलथी मारना यानी पेट को विश्राम देना, मोबाइल को त्याग देना और आत्मा को सुकून देना। और फिर, जब आप पलथी मारकर सतुआ खाते हैं, तभी तो सही में ‘देसी’ कहलाते हैं। वरना तो आप भी इंस्टाग्राम पर सत्तू डिटॉक्स लिखकर एवोकाडो स्मूदी पीने वालों में गिने जाएंगे।


पर आज का युवा पूछता है – “सतुआन पर क्या गिफ्ट देना चाहिए?” जवाब है – चुप रहो और सतुआ खाओ। ये त्यौहार पेट से जुड़ा है, प्रपोजल से नहीं। यहाँ आपको प्रेमिका को चॉकलेट नहीं, चने की चटनी खिलानी होती है। लेकिन सावधान! इस पर्व पर अगर आपने ये कह दिया कि “मैं तो सिर्फ ओट्स खाता हूँ,” तो गाँव के चौराहे पर आपका सोशल बायकॉट तय है।


तो भाइयों और बहनों, इस सतुआन पर सतुआ के चार यारों को साथ लाओ, पलथी मारो, और पेट पूजा करो। और याद रखो – सतुआ कोई गरीबों का भोजन नहीं, ये तो वो ब्रह्मास्त्र है, जो महंगाई, गैस सिलिंडर और जोमैटो के आतंक को हराता है।


लोकपर्व सतुआन की हार्दिक शुभकामनाएं – और हाँ, प्याज ज़रूर छीलिएगा, थोड़ा रोइएगा, ताकि त्यौहार का स्वाद पूरा आए।

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