सीटों की सौदेबाज़ी और कविताई

 विजय शंकर पांडेय 


बिहार की राजनीति में अब सीट शेयरिंग नहीं, कविता शेयरिंग चल रही है। जीतन राम मांझी ने सीटों की माँग भी ऐसी की मानो राजनीति नहीं, कवि सम्मेलन हो। “हो न्याय अगर तो आधा दो…” — अब लोगों को समझ नहीं आ रहा कि ये सीट की डिमांड है या साहित्य अकादमी अवॉर्ड के लिए आवेदन।



मांझी बोले — “दे दो 15 ग्राम…” सुनकर चिराग पासवान भड़क गए, बोले “हम तो किलो में विकास मांग रहे थे, आप तो ग्राम में टिकट बाँट रहे हैं!” चिराग ने तुरंत सोशल मीडिया पर अपना डायलॉग फेंक दिया — “जुर्म करो मत, जुर्म सहो मत।” अब जनता सोच में है कि ये चुनावी घोषणा है या नई वेब सीरीज़ का प्रमोशन।


पार्टी ऑफिस में अब गणित नहीं, कविता पाठ चल रहा है। कोई कह रहा “तुम 10 लो, हम 15 लेंगे”, तो कोई बोल रहा “सीटें नहीं, भावनाएँ बाँटनी चाहिए।”


बिहार की राजनीति का हाल यह है कि यहाँ गठबंधन बनने से पहले पोएट्री राइटिंग वर्कशॉप करानी पड़ेगी। 


अगली बार शायद घोषणापत्र भी छंद में आए —

“वोट दो हमें दिल खोल के,

वरना सत्ता जाएगी बोल के!”


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