विजय शंकर पांडेय
हम हिंदी वाले ही नहीं, खांटी हिंदी मीडियम वाले हैं। वह भी बंगाल के। मतलब कि दूध-भात भी हिंदी में खाए, वाकई भद्रो लोग से पाला पड़ा बांग्ला में बतियाए और कोई ज्यादा उछला तो उसकी हजामत भी ठेठ भोजपुरी में बनाए। ट्यूशन लेने के बाद भी बस नौकरी बजाने भर ही गुरुमुखी जान पाए। जबकि बचपन बीता पंजाबियों संग, मगर वे हमसे हिंदी में बतियाते रह गए।
इंटरव्यू में अंग्रेज़ी झाड़ने वाले जब “हाउ आर यू” पूछते हैं, हम बत्तीसी निपोर कर बोले—“भइया, कटत हौ, आपन सुनाव।” सामने वाले HR का ललाट वैसे ही चमक जाता है, जैसे लुंगी में मोबाइल वाइब्रेट कर जाए। कौन जिला....? हमारी कॉपियों में ‘क ख ग घ’ से ज़्यादा स्याही खर्च हुई है, मगर नौकरी में ‘ए बी सी डी’ वालों की बैंड बजाते हैं।
अंग्रेज़ी में “गुड मॉर्निंग” सुनकर भी मन में “जय सियाराम” ही गूंजता। हम ‘LOL’ नहीं लिखते, ठहाके लगाते खटिया तोड़ देते हैं। हम ‘OMG’ नहीं कहते, सीधा “हे भगवान” बोलकर जेन-जेड की कसमसाहट नाप लेते हैं। जनरेशन Z तो अंग्रेज़ी को Wi-Fi समझती है—हर जगह पकड़ लेती है। पर हम जनरेशन X वाले हिंदी को चौपाल मानते हैं—जहां बैठो, वहीं बतकुचन शुरू।
जनरेशन Z का मिजाज देखिए—उनको लगता है कि हिंदी बोलना वैसा ही है जैसे गांव में नेटवर्क ढूंढना। अरे बाबू, हम तो वही X जेन वाले हैं, जिनके मुंह से “का हाल बा” सुनकर ही दिल का नेटवर्क पूरा फुल हो जाता है।
रोटी हमारी हिंदी की है, दाल हिंदी की, और कटाक्ष भी हिंदी का। जेन जेड सोचती है हिंदी पिछड़ापन है, मगर वही जब भोजपुरी गाना बजता है तो सबसे आगे कमर मटकाती है। तो भाई साहब, कह दीजिए—हिंदी मीडियम वालों का ठाठ अलग है। बाकी सब बस डेटा पैक हैं, असली टावर तो हम ही हैं।
#तस्वीर_प्रतीकात्मक #hndi_diwas
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