क्योंकि युद्ध विराम भी एक रणनीति है

 

विजय शंकर पांडेय 


वह उसे देखती है—बिल्कुल वैसे, 

जैसे कोई रानी अपने बंदी को देखे।

वह मुस्कुराता है—जैसे कोई बंदी, 

जिसे लग रहा हो कि रानी पिघल गई।

यहीं पहली ग़लती होती है।


प्रेम शुरू नहीं होता, रणनीति शुरू होती है।

"क्या हुआ?"—वह पूछती है।

"कुछ नहीं!"—वह कहता है।

और तभी से उसका कुछ होना शुरू हो जाता है।


वह चैट में 'लास्ट सीन' नोट करता है।

वह आख़िरी 'इमोजी' के मतलब तलाशती है।

वह सोचती है—"कितना बदल गया है ये।"

वह सोचता है—"ये पहले जैसी क्यों नहीं रही?"


कभी वह जीते, तो कहती—"मैंने जीतने दिया!"

कभी वह हारी, तो कहती—"तुम तो वैसे भी हारने लायक हो!"


और फिर, दोनों स्टेटस लगाते हैं—

"लव इज वार"

लेकिन फिर से हाय मैसेज भेजते हैं।

क्योंकि युद्ध विराम भी एक रणनीति है।





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