नेहरू से सहमत या असहमत हुआ जा सकता है, भुलाया नहीं जा सकता।
विजय शंकर पांडेय
ऐसा भी नहीं है कि नेहरू का विरोध कोई नई बात है। मगर विरोधियों को भी साथ लेकर चलने का माद्दा नेहरू के पास था। या यूं कह लीजिए तमाम अंतर्विरोध के बावजूद वे ऐसे बिंदु तलाशने में माहिर थे, जहां सहमति की गुंजाइश बनाई जा सके। नेहरू के लोकतंत्र के प्रबल हिमायती होने का यह पुख्ता प्रमाण है।
नेहरू को पानी पी-पीकर कोसना आसान है, क्योंकि यह विजन भी नेहरू ने ही दी थी।
इंदिरा जैसी मजबूत छवि चाहिए, नेहरू जैसी वैश्विक साख, पर स्वीकार करने में संकोच था। दिल की बात जुबां पर आ ही गई।
धुर विरोधी भी नेहरू को मिस कर रहे हैं। विरोधियों की हालत ऐसी है जैसे कोई पुरानी फिल्म को बार-बार खारिज करें, मगर गाने गुनगुनाते रहे। गांधी की राइट चॉइस को अब “लेफ्ट” बताकर चिढ़ा रहे हैं, और खुद की गलतियों पर नेहरू का नाम लिख रहे हैं।
इतिहास से उनका नाम मिटाने की इतनी कोशिशें हो रही हैं। लोग अब गूगल पर सर्च कर रहे हैं “ये नेहरू कौन थे? कठफोड़वा के लिए नेहरू एक फुल-टाइम जॉब हैं—आराम से बैठे नहीं कि फिर नेहरू की आत्मा परेशान करने लगी! यहां न्यूटन के गति का तीसरा नियम असर दिखा रहा है।
और जनता? वो जानती है—जिसे तुम जितना मिटा रहे हो, वो उतना ही बड़ा हो जाता जा रहा है। महामानव की स्मृति को ट्रेंडिंग टॉपिक बनने से कौन रोक पाया है भला?
नेहरू, जिनकी छवि कभी 'चाचा' तो कभी 'सोशलिस्ट सुपरमैन' की थी, हमेशा विरोधियों के दिल में भी डेरा जमाए रहे।
वो टोपी, वो सूट, वो गुलाब का फूल—कहाँ मिलेगा ऐसा स्टाइलिश शिल्पकार? आधुनिक भारत के शिल्पी पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लोकतंत्र, विज्ञान और शिक्षा की मज़बूत नींव रखी। IIT, IIM, AIIMS, ISRO, BARC हों या गुटनिरपेक्ष आंदोलन—उनका योगदान अमिट है। 60 वर्ष बाद भी वे आधुनिक भारत की नींव बने हुए हैं।
पुण्यतिथि पर स्मृतियों को सादर नमन🙏
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