विजय शंकर पांडेय
क्या आपकी सोच को रिमोट से कंट्रोल नहीं किया जा सकता?...
16 मजदूर ट्रेन से कट गए.... बहुत तकलीफ हुई होगी... क्षोभ भी हुआ होगा... ज्यादातर नागरिकों के साथ ऐसा हुआ शायद... नेचुरल भी है... होना भी चाहिए... मगर रेल ट्रैक पर सोना गैरकानूनी है?... फिर ऐसा क्यों किया?... जान सबको प्यारी होती है... पुलिस की खौफ से अच्छे अच्छे सिहर उठते हैं... हाईवे पर पुलिस ड्यूटी बखूबी बजा रही है... अब विकल्प क्या बचा है?... सन 47 के किस्से सुना था... पढ़ा भी हूं... कई फिल्मों में जिक्र भी आता है... कभी कभी लग रहा है कि रामायण और महाभारत की तरह उसका भी फ्लैशबैक चल रहा है...
जयप्रकाश नारायण ही नहीं, उनके नाम पर बना सेतु भी यूपी और बिहार को जोड़ता है... मगर बलिया-छपरा बॉर्डर सील है... पुलिस मुस्तैद है... सो यहां से गुजरना टेढ़ी खीर है.... गरीब गुरबा पैदल बिहार के लिए चल दिए हैं..... वह सीधे मांझी रेल पुल का रुख कर लेते हैं... जान पर तो वैसे भी खेल रहे हैं.... लॉकडाउन के दौर में घर से जान हथेली पर रख कर ही निकले हैं... मरने से डरते तो निकलते ही क्यों? मगर वहां रुकते तो बचे रह जाते क्या?
क्या आपकी सोच को रिमोट से कंट्रोल नहीं किया जा सकता?... तो तकनीक और गैजेट से घिरी हुई इस दुनिया में आखिर क्या गुल खिलाया जा रहा है?... जाने अनजाने हमारे हर फैसले को कोई तो बैकडोर से डिक्टेट कर ही रहा है... जरूरी नहीं है कि बिग बॉस सामने मौजूद ही हो.... जॉर्ज ऑरवेल ने 1948 में ही इसका अंदेशा जता दिया था... बिहार के मोतीहारी में जन्मे ब्रितानी लेखक पत्रकार जॉर्ज ऑरवेल अपनी किताब में ‘बिग ब्रदर इज वाचिंग यू’ जैसी अवधारणाओं की बात करते हैं...
व्हाट्सऐप, ट्विटर सरीखी कथित सोशल साइटें और टीवी... शराब से कही ज्यादा एडिक्ट बना चुकी हैं.... वरना राम, बुद्ध और गांधी के देश के लोग खुली सड़क पर हिंसा का खुला आह्वान कैसे करते... सोशल साइटों के जरिए पुलिस स्टेट की खुली पैरवी की गई... यह तब हुआ जब शराब इत्यादि की दुकानें भी लॉकडाउन में पूरी तरह से बंद थी... आंबेडकर, नेहरू और राजेंद्र प्रसाद की आशंका सही निकली... अब संयोग और प्रयोग की गुत्थी आप सुलझाते रहिए
आप रात को सोते वक्त कौन सा क्वायल जला कर सोएंगे या आप कौन सा टूथपेस्ट तड़के उठ कर इस्तेमाल करेंगे... यह आप तय करते हैं क्या? या आप से करवाया जाता है?.... खूबी यह है कि सिस्टम शब्दों को नींबू वाले डिटर्जेंट से धोता है... इसके बाद सेनेटाइज्ड कर परोसता है... उदारवादी अर्थव्यवस्था... किसके प्रति उदार?...
बाजार की नब्ज को हमारे विज्ञापन की दुनिया के धुरंधर और बॉलीवुड के धनुर्धर बखूबी समझते हैं... विज्ञापन एजेंसियां जानती हैं कि कैसे मात्र 30 सेकेंड में भी किसी का ब्रेनवाश किया जा सकता है... फिल्म वाले हमारी दमित इच्छाओं को अभिव्यक्त करने में माहिर होते हैं.... वे हमारी भावनाओं को निचोड़ कर जो कॉकटेल तैयार करते हैं.... पूछिए मत...
याद कीजिए अस्सी का दशक... बॉलीवुड में एंग्री यंग मैन छा जाता है... वह दौर था जब लोगों का आजादी के बाद बनाए सिस्टम से मोहभंग हो रहा था.... फिल्म इंडस्ट्री इसे भुना रही थी... 1995 में एक फिल्म आई द गैम्बलर.... देवांग पटेल की आवाज में एक गीत था - मेरी मर्ज़ी.... मैं चाहे ये करूँ, मैं चाहे वो करूँ.... मैं चाहे यहाँ जाऊँ, मैं चाहे वहाँ जाऊँ... यह हमारी दबी हुई इच्छाओं को ही शब्दों में गूंथ रहा था...
यह बात दीगर थी कि देश में उदारवाद ने लॉलीपॉप दिखाकर लोगों के लेपेटे में लेना शुरू कर दिया था... और एंग्री यंग मैन अब कौन बनेगा करोड़पति का खोमचा लगा चुका था.... बेनी दयाल, शेफाली अल्वरेस की आवाज में बदतमीज दिल सरीखे गाने नई इबारत लिखना शुरू कर चुके थे... इसी बीच सोशल मीडिया ने 'ब्वायस लॉकर रूम' जैसे नतीजों के लिए पुख्ता जमीन तैयार कर लिया.... अभी यह भी तय होना बाकी है कि इस मामले के खुलासे होंगे भी तो किस हद तक... कारण इस प्रकरण में धनाढ़य घरों के बिगड़ैल लाडले शामिल हैं... और बच्चों से गलती हो जाया करती है
पॉलिटिकली कुशल रणनीतिकार वही है जो हर तवे पर रोटी सेंक ले... तालाबंदी कह कर नोटबंदी के जख्म को हरा नहीं करूंगा... इसलिए लॉकडाउन... ठीक रहेगा न?... हां, लॉकडाउन में श्रम कानून भोथरे कर दिए गए... एकबारगी लगा सारी फसाद की जड़ यह श्रम कानून ही हैं... इन कानूनों ने ही हिंदी बेल्ट को भारतीय अर्थ व्यवस्था का इंजन बनने से रोक दिया होगा... वेंटिलेटर हटाने पर ही तो सांस की कीमत समझ में आती है... उत्तर भारत (पंजाब और हरियाणा सरीखे अमीर राज्यों को छोड़ कर) के सस्ते श्रमिकों की बदौलत ही दक्षिण और पश्चिम भारत में उद्योगों की फसल लहलहाई... मजदूरों के पलायन से वहां के धन कुबेरों के माथे पर उभरे शिकन इसकी पुष्टि करते हैं... गुजरात और कर्नाटक सरीखे राज्यों में श्रमिकों को बंधुआ बनाने के टोटके भी आजमाए जाने लगे...
मनीषियों और विरासत की तर्ज पर क्या आपको हाईजैक नहीं किया जा सकता... समर्थन या विरोध अर्थात हेड या टेल... फिल्म 'शोले' में अमिताभ टॉस करने के लिए जो सिक्का उछालते हैं... याद है....
मोगांबो खुश हुआ #Mediapa
#10मई2020
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