हर गली में आपको ‘बाबा’ मिलेंगे और हर चौराहे पर ‘गुरु’
विजय शंकर पांडेय
बनारस की हर गली में आपको ‘बाबा’ और हर चौराहे पर ‘गुरु’ मिल जाएंगे। बनारस की तासीर समझनी हो तो यह जुमला ही काफी है - ई बनारस हव राजा... मिजाज में अइबा त दिल में समइब, अकड़ में अइबा त तोहरे जइसन 56 देखले हईं। कहा तो यहां तक जाता है कि रांड़, सांड़, सीढ़ी, संन्यासी, इनसे बचे वो सेवे काशी। कारण बनारस में सब गुरु ही हैं, केहू नाही चेला। जब बाकी दुनिया बेड टी की चुस्की ले रही होती है, बनारसी दिव्य निपटान के बाद गरमागरम कचौड़ी और जलेबी लेकर टंच हो चुका होता है। बनारस में लस्सी पी नहीं, भिड़ाई जाती है। इसीलिए कहा जाता है कि जो मजा बनारस में, न पेरिस न फारस में।
बनारसियों को सबको कनफ्यूज करने में बड़ा मजा आता है। रेहन पर रग्घू उपन्यास में काशीनाथ सिंह लिखते हैं - “शरीफ’ इंसान का मतलब है निरर्थक आदमी। भले आदमी का मतलब है ‘कायर’ आदमी। जब कोई आपको ‘विद्वान’ कहे तो उसका अर्थ ‘मूर्ख समझिए। और जब कोई ‘सम्मानित’ कहे तो ‘दयनीय’ समझिए।” कवि केदारनाथ सिंह के शब्दों में-
तुमने कभी देखा है
ख़ाली कटोरों में वसंत का उतरना!
यह शहर इसी तरह खुलता है
इसी तरह भरता
और ख़ाली होता है यह शहर
दुनिया के दिल का नुक़्ता है बनारस – ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब की माने तो बनारस दुनिया के दिल का नुक़्ता है। अपनी मशहूर बनारस यात्रा के दौरान ग़ालिब ने जो कुछ भी देखा, उसे अपने एक मसनवी 'चिराग-ए-दैर' में दर्ज कर लिया। कुल तीन हफ्ते गुजारने के बाद ग़ालिब ने लिखा ''जब मैं बनारस में दाखिल हुआ, उस दिन पूरब की तरफ़ से जान बख़्शने वाली, जन्नत की- सी हवा चली, जिसने मेरे बदन को तवानाई अता की और दिल में एक रूह फूंक दी। उस हवा के करिश्माई असर ने मेरे जिस्म को फ़तह के झण्डे की तरह बुलंद कर दिया। ठण्डी हवा की लहरों ने मेरे बदन की कमजोरी दूर कर दी।''
बनारस इज़ ओल्डर दैन द हिस्ट्री - मार्क ट्वेन
संस्कृति की आदिम लय का शहर है बनारस। सभ्यता का जल यहीं से जाता है, सभ्यता की राख यहीं आती है। इस बात की तस्दीक 1896 में बनारस पहुंचे अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन ने अपने यात्रा वृतांत 'फॉलोविंग दी इक्वेटर' में भी की है। वे लिखते हैं कि 'बनारस इज़ ओल्डर दैन द हिस्ट्री' यानी ये शहर इतिहास से भी पुराना है। जाहिर है सौ साल से भी अधिक समय पहले लिखी उनकी यह बात आज भी इस शहर के चरित्र पर सटीक बैठती है। तकरीबन 4,000 साल पुरानी एक शहरी सभ्यता के भग्नावशेष वाराणसी के बभनियांव में अभी हाल ही में मिले हैं, तो वहीं महाजनपदों के युग में काशी एक महत्वपूर्ण और विशाल महाजनपद रह चुकी थी।
सदियों से धार्मिक सहअस्तित्व का प्रतीक रहा है बनारस
बनारस, हिंदूओं के अलावा जैन, बौद्ध, कबीरपंथी, रैदासी, अघोर जैसे मतों और संप्रदायों का भी पवित्र तीर्थस्थल है। जाहिर है यह शहर सदियों से धार्मिक सहअस्तित्व का प्रतीक रहा है। जैन साहित्य के अनुसार, 9वीं शताब्दी में वाराणसी पर पार्श्वनाथ के पिता राजा अश्वसेन का शासन था। महावीर ने वाराणसी और सारनाथ में उपदेश दिए थे। बनारस में पार्श्वनाथ जैन मंदिर भी है। काशी में चार जैन तीर्थंकरों सुपार्श्वनाथ, चंद्रप्रभु, श्रेयांसनाथ, पार्श्वनाथ का जन्म हुआ था। वाराणसी के सारनाथ में ही गौतम बुद्ध ने भी अपना पहला उपदेश दिया था। पांच भिक्षुओं के साथ यहीं पर उन्होंने बौद्ध संघ की स्थापना की थी। अतः यदि यह कहा जाए कि बौद्ध धर्म की स्थापना बनारस में हुई तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। जाहिर है, शुरू से ही बनारस धर्म, संस्कृति और व्यापार के प्रमुख केंद्र के रूप में जाना जाता रहा है।
धर्म, साहित्य, भक्ति, संगीत, कला का केंद्र है बनारस
शैव मत के केंद्र के रूप में आदि शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में इसे प्रसिद्ध किया। शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ बनारस में ही स्थित है, जो हिंदुओं के प्रमुख तीर्थों में से एक माना जाता है। कबीर, रैदास से लेकर तुलसीदास ने भी अपने रामचरितमानस की रचना बनारस में ही की। बनारस को यूं ही नहीं भारत की सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है, अरसे से धर्म, साहित्य, भक्ति, संगीत, कला के केंद्र के रूप में भी यह शहर अपना एक अलग स्थान रखता है। वाराणसी को हिन्दी साहित्य का केंद्र तो माना ही जाता है। यहां हिन्दूस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना जन्मा और विकसित हुआ। कबीर के अलावा भारतेंदु हरिश्चंद्र, प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, शिव प्रसाद सिंह, धूमिल, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी, गीतकार शंभूनाथ सिंह, आलोचक बच्चन सिंह, नामवर सिंह, कवि केदारनाथ सिंह, रामदरश मिश्र, पत्रकार-लेखक विष्णु चंद्र शर्मा आदि का इस शहर से गहरा नाता रहा है। इसके अलावा उस्ताद बिस्मिल्लाह खां, पंडित रविशंकर, गिरिजा देवी, सितारा देवी, पंडित छन्नूलाल मिश्र, राजन-साजन मिश्र, किशन महाराज, लच्छू महाराज, कमला शंकर, प्रेम लता शर्मा, जयदेव सिंह, जोतिन भट्टाचार्य, विकास महाराज, बाबा अलाउद्दीन खान, मियां तानसेन की वजह से बनारस की अलग पहचान है।
सर्वविद्या की राजधानी
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय को सर्वविद्या की राजधानी इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह प्राचीन ज्ञान और आधुनिक ज्ञान के संगम का प्रतीक है। बीएचयू के अलावा इस शहर में 5 और विश्वविद्यालय हैं- महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, केंद्रीय उच्च तिब्बती अध्ययन संस्थान, शासकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय एवं महाविद्यालय और अशोक इंस्टीट्यूट। वाराणसी को मुक्तिभूमि, शिवपुरी, विश्वनाथनगरी, मंदिरों का शहर, भारत की धार्मिक राजधानी, भगवान शिव की नगरी और ज्ञान नगरी के नाम से भी जाना जाता है। वाराणसी का मूल नाम काशी था। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, इसकी स्थापना भगवान शिव ने लगभग 5,000 साल पहले की थी। वाराणसी को बनारस भी कहा जाता है। मुगलकाल और अंग्रेज़ी शासन के दौरान इसका आधिकारिक नाम बनारस ही था। आजादी के बाद 24 मई, 1956 को इसका आधिकारिक नाम वाराणसी कर दिया गया। वैसे इस शहर का नाम आनंदकानन, महासंशन, रूद्रवा, कशिका, मंदिरों का शहर, त्रिपुरारिराजनगरी के अलावा शंकरपुरी, जितवारी, आनंदरूपा, श्रीनगरी, गौरीमुख, महापुरी, तपस्थली, धर्मक्षेत्र, अर्लकपुरी, जयंशिला, पुष्पावती, पोटली, हरिक्षेत्र, विष्णुपुरी, शिवराजधानी, कसीनगर, काशीग्राम भी है। भारत में यह एकमात्र ऐसा अनोखा शहर है, जिसके 50 से भी ज्यादा नाम हैं।
भोलेनाथ की नगरी को नया लुक देने की कवायद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 से 2024 के बीच वाराणसी को करीब 60 हज़ार करोड़ रुपये की परियोजनाओं की सौगात दी है। इन परियोजनाओं के ज़रिए वाराणसी में कई बदलाव हुए हैं। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बना, घाटों का कायाकल्प किया गया, घाट यात्रा और क्रूज़ पर्यटन को बढ़ावा मिला, गंगा-पर्यटन पर ज़्यादा ध्यान दिया गया। बाबा भोले की नगरी वाराणसी को नया लुक देने की तैयारी शुरू कर दी गई है। घाटों-मंदिरों और गलियों के शहर बनारस में बदलाव के दौर में नई काशी बसाने की परियोजना को धरातल पर उतारने की ओर कदम बढ़ाए गए हैं। नई काशी योजना के तहत शहर के विस्तार के लिए बाबतपुर एयरपोर्ट मार्ग पर शहर की आउटर रिंग रोड किनारे छह नई टाउनशिप (आवासीय योजना) विकसित करने के साथ ही अस्पतालों के लिए मेडिसिटी, उद्योग और व्यापार के लिए वर्ल्ड सिटी, शिक्षण संस्थानों के लिए विद्या निकेतन की परिकल्पना की गई है।
एक नजर वाराणसी में हुए बड़े विकास कार्यों पर
• गंगा के घाटों का पुनरुद्धार और विस्तार का काम हुआ।
• गंगा सफाई के लिए नमामि गंगे योजना चलाई गई।
• अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर 'रुद्राक्ष' शुरू किया गया।
• वाराणसी में 140 मिलियन लीटर प्रतिदिन की क्षमता वाला एसटीपी निर्माण हुआ। अब तक कुल 10 एसटीपी बनाए गए।
• हैंडलूम को बढ़ावा देने के लिए ट्रेड फैसिलिटी सेंटर बनाया गया।
• बिजली के तारों को अंडरग्राउंड किया गया।
• वाराणसी से प्रयागराज, गोरखपुर, आजमगढ़ समेत अन्य जिलों को जोड़ने वाले हाइवे का चौड़ीकरण किया गया।
• 750 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से रिंग रोड बना।
• डीएलडब्लू का 266 करोड़ रुपये की लागत से पुनरुद्धार किया गया।
• रेल नेटवर्क और रेलवे स्टेशनों का विकास हुआ है।
• रामनगर मार्ग पर गंगा के ऊपर पुल, चौराहों का सुंदरीकरण समेत कई काम हैं, जिसने काशी की तस्वीर बदलकर रख दी है।